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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास शती के मध्य के आसपास] पर पूर्णिमागच्छ के ही चक्रेश्वरसूरि और तिलकाचार्य द्वारा रची गयी वृत्ति [रचनाकाल विक्रम सम्वत् की १३वीं शती के मध्य के आसपास] की वि० सं० १५०४ में लिपिबद्ध की गयी प्रति की दाताप्रशस्ति में सार्धपूर्णिमागच्छ के पुण्यप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का उल्लेख है। उक्त प्रशस्ति में इस गच्छ के किन्हीं अन्य मुनिजनों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। ५. आरामशोभाचौपाइ -
यह कृति सार्धपूर्णिमागच्छ के विजयचन्द्रसूरि के शिष्य [श्रावक ?] कीरति द्वारा वि० सं० १५३५/ईस्वी सन् १४७९ में रची गयी है । ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्तर्गत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है:
रामचन्द्रसूरि
पुण्यचन्द्रसूरि
विजयचन्द्रसूरि
कीरति [वि० सं० १५३५/ई० सन्
१४७९ में आरामशोभा
चौपाइ के रचनाकार] ६. आवश्यकनियुक्तिबालावबोध की प्रतिलिपि की प्रशस्ति -
सार्धपूर्णिमागच्छीय विद्याचन्द्रसूरि ने वि० सं० १६१० में उक्त कृति की प्रतिलिपि करायी । इसकी दाताप्रशस्ति में उनकी गुरु-परम्परा का विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है :
उदयचन्द्रसूरि
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