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________________ ६८८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास दूसरी पट्टावली (रचनाकाल - विक्रम सम्वत् बीसवीं शताब्दी का अंतिम चरण) में तो एक कदम और आगे बढ़ कर भुवनदीपक का रचनाकाल (वि० सं० १२२१) का भी उल्लेख कर दिया गया है। किन्ही पद्मप्रभसूरि नामक मुनि द्वारा रचित भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिष शास्त्र की एक कृति मिलती है, परन्तु उसकी प्रशस्ति में न तो रचनाकाल ने अपने गुरु, गच्छ आदि का नाम दिया है और न ही इसका रचनाकार ही बतलाया है, फिर भी नागपुरीयतपागच्छीय साक्ष्यों - छन्दकोशवृत्ति की प्रशस्ति तथा इस गच्छ की पट्टावली के विवरण को प्रामणिक मानते हुए विद्वानों ने इन्हें वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से अभिन्न माना है। नागपुरीयतपागच्छीयपट्टावली (रचनाकाल २० वीं शताब्दी का अंतिम भाग) में उल्लिखित भुवनदीपक के जहां तक रचनाकाल का प्रश्न है, चूंकि इस सम्बन्ध में किन्ही भी अन्य साक्ष्यों से कोई सूचना नहीं मिलती, दूसरे अर्वाचीन होने से इसमें अनेक भ्रामक और परस्पर विरोधी सूचनायें संकलित हो गयी हैं अतः इसकी प्रामणिकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है । पद्मप्रभसूरि की परम्परा में हुए हरिषेण एवं रत्नशेखरसूरि द्वारा अपने गच्छ का उल्लेख न करना तथा इसी परम्परा में बाद में हुए चन्द्रकीर्तिसूरि, मानकीर्ति, अमरकीर्ति आदि द्वारा स्वयं को नागपुरीय तपागच्छीय और अपनी परम्परा को बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि से सम्बद्ध बतलाना वस्तुत: इतिहास की एक अनबूझ पहेली है जिसे पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में सुलझा पाना कठिन है और यह प्रश्न अभी तो अनुत्तरित ही रह जाता है। सन्दर्भ सूची : १-२ (अ) तीर्थे वीरजिनेश्वरस्य विदिते श्रीकौटिकाख्ये गणे । श्रीमच्चान्द्रकुले वटोद्भवबृहद्गच्छे गरिम्नान्विते || श्रीमन्नागपुरीयकाह्वयतपाप्राप्तावदातेऽधुना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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