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संडेरगच्छ
१२५१ प्राप्तिस्थान - श्वेताम्बर जैन मन्दिर, रामघाट, वाराणसी वि० सं० १३८८ वैशाख सुदि८५ भगवान् पार्श्वनाथ की पाणाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान - चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वि० सं० १३८९ ज्येष्ठ सुदि ९८ भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
प्राप्ति स्थान - पूर्वोक्त, बीकानेर इस प्रकार स्पष्ट है कि सुमतिसूरि (द्वितीय) दीर्घजीवी एवं प्रतिभाशीली जैन आचार्य थे। संडेरगच्छ से सम्बन्धित वि० सं० १३७१५० एवं १३९२५१ के प्रतिमा लेखों में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम श्रीसूरि दिया गया है। श्रीसूरि कौन थे? क्या ये सुमतिसूरि (द्वितीय) से भिन्न कोई अन्य आचार्य हैं या स्थानाभाव से सूत्रधार ने सुमतिसूरि न लिखकर श्रीसूरि नाम उत्कीर्ण कर दिया ? यह विचारणीय है।
सुमतिसूरि (द्वितीय) के पश्चात् उनके पट्टधर शान्तिसूरि (द्वितीय) संडेरगच्छ के नायक बने । इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कोई भी प्रतिमा आज उपलब्ध नहीं है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, इनके गुरु सुमतिसूरि (द्वितीय) की अन्तिम ज्ञात तिथि वि० सं० १३८९ है, अतः ये उक्त तिथि के पश्चात् ही अपने गुरु के पट्टधर हुए होगें । इसी प्रकार इनके शिष्य ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० १४४७ का है, अतः इनका गच्छ नायकत्व का काल वि० सं० १३८९ से वि० सं० १४१७ के मध्य मान सकते हैं । इनके पट्टधर ईश्वरसूरि (तृतीय) द्वारा प्रतिष्ठापित दो प्रतिमाओं का लेख आज उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार
वि० सं० १४१७ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार५२ वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
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