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________________ हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास निर्ग्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पूर्वमध्यकालीन सुविहितमार्गीय गच्छों में हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का विशिष्ट स्थान है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित होता है यह गच्छ राजस्थान में हर्षपुर नामक स्थान से उद्भूत हुआ माना जाता है। हर्षपुर वर्तमान में हरसोर के नाम से जाना जाता है। यह नागौर जिले में पुष्कर-डेगाना मार्ग पर स्थित है। प्रस्तुत गच्छ की गुर्वावली में जयसिंहसूरि का नाम इस गच्छ के आदिम आचार्य के रूप में मिलता है । उनके शिष्य अभयसिंहसूरि का नाम इस गच्छ के आदिम आचार्य के रूप में मिलता है। उनके शिष्य अभयदेवसूरि हुए जिन्हें चौलुक्य नरेश कर्ण (वि० सं० ११२०-११५०/ईस्वी सन् १०६४१०९४) से मलधारी विरुद् प्राप्त हुआ था। बाद में यही विरुद् इस गच्छ के एक नाम के रूप में प्रचिलत हो गया । कर्ण का उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज (वि० सं० ११५०-११९९/ईस्वी १०९४-११४३) भी इनका बड़ा सम्मान करता था । इन्हीं के उपदेश से शाकम्भरी के चाहमान नरेश पृथ्वीराज 'प्रथम' ने रणथम्भौर के जैन मन्दिर पर स्वर्णकलश चढ़ाया था। गोपगिरि (ग्वालियर) के राजा भुवनपाल (विक्रम सम्वत् की १२वीं शती का छठ्ठां दशक) और सौराष्ट्र का राजा राखंगार पर भी इनका प्रभाव था । अभयदेवसूरि के शिष्य विभिन्न ग्रन्थों के रचनाकार प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य हेमचन्द्रसूरि हुए । अपनी कृतियों की अन्त्यप्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को प्रश्नवाहनकुल, मध्यमिका शाखा और हर्षपुरीयगच्छ के मुनि के रूप में बतलाया है । कल्पसूत्र की 'स्थविरावली' में भी प्रश्नवाहकुल और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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