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________________ ११९८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास अभयदेवसूरिः आप आचार्य प्रद्यम्नसूरि के शिष्य तथा सिद्धसेनदिवाकरप्रणीत सन्मतितर्क के टीकाकार के रूप में विख्यात है। यह बात उक्त टीका की प्रशस्ति से ज्ञात होती है, परन्तु इस प्रशस्ति में इन्होंने अपने गच्छ, समय, शिष्यसन्तति आदि की कोई चर्चा नहीं की है। राजगच्छीय विद्वानों ने अपनी कृतियों में इन्हें 'तर्कपंचानन' जैसे विरुद् प्रदान किये हैं।३३ सन्मतितर्कटीका की प्रस्तावना में पं० सुखलाल जी और पं० बेचरदास जी ने इनका समय विक्रम सम्वत् की १० वीं शती का अन्तिम भाग और ११वीं शती का पूर्वभाग निश्चित किया है।२४ उत्तराध्ययनसूत्र पर थारापद्रगच्छीय वादिवेताल शांतिसूरि द्वारा रचित 'पाइय' टीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने किन्ही अभयदेवसूरि का अपने प्रमाणशास्त्र के गुरु के रूप में अत्यन्त आदर के साथ उल्लेख किया है।३५ पं० सुखलाल जी और पं० बेचरदास जी ने शांतिसूरि के गुरु के रूप में इन्हीं अभयदेवसूरि के संभावना प्रकट की है।५ प्रभावकचरित के अनुसार शांतिसूरि का स्वर्गवास वि० सं० १०९६/ई० सन् १०४० में हुआ था।३७ शांतिसूरि ने महाकवि धनपालकृत तिलकमञ्जरी का संशोधन किया था और उस पर एक टिप्पणी भी लिखी थी ।२८ धनपाल परमारनरेश मुंज (ई० सन् ९७३-९९६) तथा भोज (ई० सन् १०१०१०५५) के राजदरबार के कवि थे । इन सब तथ्यों को देखते हुए पं० महेन्द्रकुमारजी ने अभयदेवसूरि का काल वि० सं० की ११ वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक निश्चित किया है।३९ सरसरे तौर पर उनका कार्यकाल ईस्वी ९५०-१००० के बीच रखा जा सकता है। धनेश्वरसूरि 'प्रथम': आप अभयदेवसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। राजगच्छ के उत्तरकालीन ग्रन्थकारों की रचनाओं की प्रशस्तियों से इनके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है । प्रभावकचरित की प्रशस्ति के अनुसार आप त्रिभुवनगिरि के राजा कर्दम थे । आप ने अभयदेवसूरि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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