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________________ सरवालगच्छ १२७७ श्रीमालज्ञातीय श्रे० लाखू सावकुमार भार्या.... दे० सयार्थं (श्रेयार्थ) संखीसर (शंखेश्वर) वर्ति श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसरवालगच्छे श्रीवर्धमानसूरि शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिभिः ॥ अभिलेखीय साक्ष्यों के उक्त विवरणों से स्पष्ट है कि कई लेखों में वर्धमानाचार्य और जिनेश्वराचार्य ये दो नाम आये हैं, किन्तु वि० सं० १२८६ / ई० सन् १२३० के लेख को छोड़कर किसी अन्य लेख में इन्हें गुरु-शिष्य नहीं बतलाया गया है । इस दृष्टि से उक्त लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और यह कहा जा सकता है कि सरवालगच्छ में पट्टधर आचार्यों को यही दो नाम पुनः पुनः प्राप्त होते थे। उक्त साक्ष्यों के आधार पर सरवालगच्छ की गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : [?] वि० सं० १११०/ई० सन् १०५४ प्रतिमालेख [आचार्य का नाम अनुपलब्ध] [?] वि० सं० ११४५ / ई० सन् १०८९ प्रतिमा लेख [आचार्य का नाम अनुपलब्ध] वर्धमानाचार्य वि० सं० ११४९/ई० सन् १०९३ में इनके श्रावकशिष्य ने जिनप्रतिमा निर्मित करायी । वि० सं० ११५९ / ई० सन् ११०३ और वि० सं० ११६४ / ई० सन् ११०८ के प्रतिमा लेखों में यद्यपि किसी आचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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