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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उनका क्रम समान रूप से मिल जाता है। जैसा कि इन दोनों गुर्वावलियों के विवरण से स्पष्ट होता है ये पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा से सम्बद्ध हैं। अभिलेखीय साक्ष्य
यद्यपि पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १२९१/ई० सन् १२३५ का है, किन्तु वि०सं० १४६५/ई० सन् १४०९ के एक प्रतिमालेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ के (पुरातन) आचार्य विजयसिंहसूरि ने वि०सं० १२०८ में डीडिला ग्राम में महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी जिसे वि०सं० १४६५ में वीरप्रभसूरि ने पुनर्स्थापित की।° वर्तमान में यह प्रतिमा कोरटा स्थित एक जिनालय में संरक्षित है । यदि उक्त प्रतिमालेख के विवरण को सत्य मानें तो पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि० सं० १२०८ का माना जा सकता है। इस गच्छ के कुल १७२ लेख मिले हैं जो वि०सं० १७७८ तक के है। इनमें १६वीं शती के लेख सर्वाधिक हैं जब कि १७वीं शती का केवल एक लेख मिला है। इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है :
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