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पल्लीवालगच्छ
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महेश्वरसूरि के निधन की बात कही गई है और उन्हें पल्लीवालगच्छ का प्रवर्तक बताया गया है। दोनों पट्टावलियों द्वारा महेश्वरसूरि को समसामयिक सिद्ध करने से यह अनुमान ठीक लगता है कि महेश्वरसूरि इस गच्छ के प्रतिष्ठापक रहे होंगे ।
मुनि कांतिसागर के अनुसार प्रद्योतनसूरि के शिष्य इन्द्रदेव से विक्रम संवत् की १२वीं शती में यह गच्छ अस्तित्व में आया, किन्तु उनके इस कथन का आधार क्या है, ज्ञात नहीं होता ।
उपकेशगच्छ से निष्पन्न कोरंटगच्छ में हर तीसरे आचार्य का नाम नन्नसूरि मिलता है१३, इससे यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि पल्लीवालगच्छ भी उक्त गच्छों में से किसी एक गच्छ से उद्भूत हुआ होगा । इस गच्छ से संबद्ध १६वीं शती की ग्रन्थ- प्रशस्तियों में इसे कोटिकगण और चंद्रकुल से निष्पन्न बताया गया है, परंतु इस गच्छ में पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति को देखते हुए इसे चैत्यवासी गच्छ मानना उचित प्रतीत होता है । वस्तुत: यह गच्छ सुविहितमार्गीय था या चैत्यवासी, इसके आदिम आचार्य कौन थे, यह कब और क्यों अस्तित्व में आया साक्ष्यों के अभाव में ये सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित ही रह जाते हैं ।
सन्दर्भसूची
२.
३.
मुनि जिनविजय, संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थांक ५३, मुंबई १९६१ ई०., पृष्ठ ७२-७६.
श्री अगरचंद नाहटा, पल्लीवालगच्छपट्टावली ।
श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, संपा० श्री आत्मानन्दजी शताब्दी ग्रंथ, मुंबई १९३६ ई०. हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १८२ - १९६.
उक्त दोनों पट्टावलियां श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने स्वसंपादित जैनगुर्जरकविओ भाग-३, खंड-२, पृष्ठ २२४४ - २२५४ में भी प्रकाशित की हैं.
Muni Punyavijaya, Ed. Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay, G.O.S. No. 135, Baroda, 1961, A.D., pp 81-82.
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