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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
यशोदेवसूरि (वि०सं० १६६७
-१६८१)
प्रतिमालेख जहां तक पल्लीवाल गच्छ की उक्त दोनों पट्टावलियों के विवरणों की प्रामाणिकता का प्रश्न है, उसमें प्रथम पट्टावली का यह कथन कि महेश्वरसूरि की शिष्यसंतति पल्लीवालगच्छीय कहलाई, सत्य के निकट प्रतीत होता है। चूकि इस पट्टावली के अनुसार वि०सं० ११४५ में उनका निधन हुआ, अत: यह निश्चित है कि उक्त तिथि के पूर्व ही यह गच्छ अस्तित्व में आ चुका था। यद्यपि इस पट्टावली में उल्लिखित अनेक बातों का किन्हीं भी अन्य साक्ष्यों से समर्थन नहीं होता, अतः उन्हें स्वीकार कर पाना कठिन है, फिर भी इसमें पल्लीवालगच्छ के उत्पत्ति सम्बन्धी साक्ष्य उपलब्ध होने के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। ___जहां तक दूसरी पट्टावली की प्रामाणिकता की बात है, इसमें यशोदेव- नन्नसूरि- उद्योतनसूरि- महेश्वरसूरि- अभयदेवसूरि- आमसूरिशांतिसूरि- इन पट्टधर आचार्यों के नामों की पुनरावृत्ति दर्शाई गई है। जैसा कि हम पीछे देख चुके हैं, साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से इसका समर्थन होता है। इस प्रकार इस पट्टावली में दिए गए पट्टधर आचार्यों के नाम और उनके पट्टक्रम की प्रामाणिकता प्रायः सिद्ध हो जाती है, किन्तु इसमें ५७वें पट्टधर आमसूरि, ५८वें पट्टधर शांतिसूरि और ५९वें पट्टधर यशोदेवसूरि से संबद्ध तिथियों को छोड़कर प्रायः सभी तिथियां मात्र अनुमान के आधार पर कल्पित होने के कारण अभिलेखीय या अन्य साहित्यिक साक्ष्यों से उनका समर्थन नहीं होता तथापि पल्लीवाल गच्छ से संबद्ध आचार्यों का प्रामाणिक पट्टक्रम प्रस्तुत करने के कारण इसकी महत्ता निर्विवाद है । इस पट्टावली में ४१वें पट्टधर महेश्वरसूरि का निधन वि०सं० ११५० में बतलाया गया है। प्रथम पट्टावली में भी वि०सं० ११४५ में
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