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________________ ८२० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है पार्श्वचन्द्रगच्छ की चार पट्टावलियां आज प्राप्त होती हैं । इनमें से प्रथम पट्टावली१६ वि०सं० की १८वीं शती में रची गयी प्रतीत होती है तथा अन्य तीनों विक्रम सम्वत् की २०वीं शती के अंतिम दशक में । प्रथम पट्टावली का प्रारम्भ सुधर्मा स्वामी से होता है । चूंकि इस गच्छ का उद्भव नागपुरीयतपागच्छ से माना जाता है और नागपुरीयतपागच्छ का बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से । अतः इस पट्टावली में पद्मप्रभसूरि और उनके बाद के जिन पट्टधर आचार्यों का नाम और क्रम मिलता है, वह इस प्रकार है : तालिका - २ पद्मप्रभसूरि (भवुनदीपक के प्रणेता) प्रसन्नचन्द्रसूरि (वि०सं० ११७४ में नागपुरीयतपागच्छ के | प्रवर्तक) गुणसमुद्रसूरि जयशेखरसूरि (वि०सं० १३०१ में आचार्य पद प्राप्त) वज्रसेनसूरि (वि०सं० १३४२ में आचार्य पद प्राप्त) हेमतिलकसूरि (वि०सं० १३९९ में दिल्ली के अधिपति फिरोजशाह तुगलक से भेंट किया) रत्नशेखरसूरि (फिरोजशाह तुगलक के प्रतिबोधक) हेमचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२४ में आचार्य पद प्राप्त) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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