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नागपुरीयतपागच्छ
| अमरकीर्तिसूरि
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| महो० देवसुन्दर मुनिधर्म (वि० सं० १६५७ में
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की रचना हुई)
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भावचन्द्र (गोपालटीका के कर्ता)
शिवराज
श्रीपालचरित्र के प्रतिलिपिकार)
६८१
चूंकि नागपुरीयतपागच्छ का वि० सं० १५५१ से पूर्व कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, अतः चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्तिगत गुर्वावली में आचार्य सोमरत्नसूरि से पूर्ववर्ती हेमरत्नसूरि, हेमसमुद्रसूरि, हेमहंससूरि, पूर्णचन्द्रसूरि आदि जिन मुनिजनों का उल्लेख मिलता है, उन्हें किस गच्छ से सम्बद्ध माना जाये, यह समस्या सामने आती है । इस सम्बन्ध में हमें अन्यत्र प्रयास करना पड़ेगा । दूह : तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में हमें हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३), हेमरत्नसूरि के गुरु हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७ - २८) और हेमसमुद्रसूरि के गुरु तथा पूर्णचन्द्रसूरि के शिष्य हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३ - १५१३) का उल्लेख प्राप्त होता है । इनका विवरण इस प्रकार है :
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