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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में उल्लिखित रचनाकार चन्द्रकीर्ति के गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लिखित राजरत्नसूरि और उनके गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं । इस आधार पर चन्द्रकीर्तिसूरि और रत्नकीर्तिसूरि-सोमरत्नसूरि के प्रशिष्य, राजरत्नसूरि के शिष्य और परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते है । इस प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों का जो वंशवृक्ष बनता है, वह इस प्रकार है :
सोमरत्नसूरि
(वि० सं० १५५१) प्रतिमालेख
६८०
चन्द्रकीर्तिसूरि (वि० सं० १६२३ में
सारस्वतव्याकरणदीपिका के कर्ता
प्रसिद्ध रचनाकार)
I राजरत्नसूरि
मानकीर्तिसूरि हर्षकीर्ति
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(नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करनेवाला सर्वप्रथम साक्ष्य)
रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६) प्रतिमालेख
पद्मचन्द्र
सारस्वतव्याकरण- ( इसकी प्रार्थना की प्रथमादर्श प्रति के लेखक
पर सारस्वतव्याकरणदीपिका
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