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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
गुणसमुद्रसूरि (वि० सं० १४९२-१५१९)
गुणदत्तसूरि (वि० सं० १५२३) तालिका :३
गुणदेवसूरि (वि० सं० १५१७-१५३५)
पद्माणंदसूरि (वि० सं० १४८४-१४९९)
विनयप्रभसूरि (वि० सं० १५०१-१५१७)
क्षेमरत्नसूरि (वि० सं० १५२७)
सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५२७-१५२९)
___ हेमसिंहसूरि
___ (वि० सं० १५६०-१५८३) जैसा कि इसी निबन्ध में साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं इस गच्छ के १६ वीं शताब्दी के तीन ग्रन्थकारों - गुणरत्नसूरि और ज्ञानसागरसूरि ने अपने गुरु तथा सोमरत्नसूरि ने प्रगुरु के रूप में गुणदेवसूरि का उल्लेख किया है। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित उपरोक्त तालिका - २ में भी गुणदेवसूरि का नाम मिलता है जिन्हें समसामयिकता
और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मान लेने में कोई बाधा नहीं दिखायी देती। इस प्रकार उक्त दोनों गुर्वावलियों के परस्पर समायोजन से १६वीं शती में इस गच्छ के मुनिजनों के एक शाखा की गुरु-शिष्य परम्परा का जो स्वरुप उभरता है, वह इस प्रकार है -
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