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नागेन्द्रगच्छ
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विजयसेनसूरि अपने समय के उद्भट विद्वान् थे । इनके द्वारा रचित रैवंतगिरिरास " नामक एकमात्र कृति मिलती है जो अपभ्रंश भाषा में है । यह वस्तुपाल की गिरनार यात्रा के समय रची गयी । इन्होंने चन्द्रगच्छीय आचार्य बालचन्द्रसूरि द्वारा रचित विवेकमंजरीवृत्ति ( रचनाकाल वि० सं० की तेरहवीं शती का अंतिम चरण) का संशोधन किया। इसी गच्छ प्रद्युम्नसूर (समरादित्यसंक्षेप के रचनाकार) ने इनके पास न्यायशास्त्र का अध्ययन किया था ।
यद्यपि विजयसेनसूरि द्वारा रचित केवल एक ही कृति मिलती है। फिर भी सम्भव है कि इन्होंने कुछ अन्य रचनायें भी की होंगी, जो आज नहीं मिलतीं ।
उदयप्रभसूर
ये विजयसेनसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। महामात्य वस्तुपाल ने इनके शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था की थी और इनके दीक्षा-प्रसंग पर बहुत द्रव्य व्यय किया था । इनके द्वारा रची गयी कई कृतियाँ मिलती हैं, जो निम्नानुसार हैं :
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सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी (रचनाकाल वि० सं० १२७७ / ई०
स० १२२१)
स्तम्भतीर्थस्थित आदिनाथ जिनालय की १९ श्लोकों की प्रशस्ति ( रचनाकाल वि० सं० १२८१ / ई० स० १२२५) धर्माभ्युदयमहाकाव्य अपरनाम संघपतिचरित्र ( वि० सं० १२९० / ई० स० १२३४ से पूर्व )
वस्तुपाल की गिरनार प्रशस्ति (वि० सं० १२८८/ई० स० १२३२)
उपदेशमालाटीका (वि० सं० १२४४ ई०स०१२३२) आरम्भसिद्धि (ज्योतिष ग्रन्थ)
वस्तुपालस्तुति
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