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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पुण्यइं लाभई सुखसंयोग, पुण्यइ काजइ देवगह भोग, पुण्यइं सवि अंतराय टलइ, मनवंछित फल पुण्य लहइ ॥ . साधपूनिम पक्ष गच्छ अहिनाण, श्रीरामचन्द्रसूरि सुगुरु सुजाण । नवरसे फरइ अमृत वखाणि, चतुर्विध श्री संघ मनि आण ॥ तस पाटधर साहसधीर, पाप पखालइ जाणे नीर, पंच महाव्रत पालणवीर, श्रीपुण्यचन्द्रसूरि गुरु बा गंभीर ॥ तास पट्ट उदया अभिनवा भाणु, जाणे महिमा मेरु समान । गिरुआ गुणह तण निधान, श्री विजयचन्द्रसूरि युगप्रधान ॥ संवत पंनर पांत्रीसु जाणि, आसोइ पूनमि अहिनाणि । गुरुवारइ पूक्ष नक्षत्र होइ, पूरव पुण्य तणां फल जोई ।। कर जोडी कीरति प्रणमइ, आरामसोभा रास जे सुणइ । भणइ गुणइ जे नर नि नारि, नवनिधि वलसई तेह घरबारि ॥ -- इति आरामसोभा रास समाप्त । मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय परिवर्धित संस्करण - संपा० जयन्त कोठारी, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई १९८६ ईस्वी, पृष्ठ ४८३-४८४. इतिश्रीआवश्यकसूत्रस्य बालावि (व) बोध समाप्तं । श्रीरस्तु संवत् १६१० वर्षे वैशाख वदि ३ शुक्रे म० गोवाल लिखितं श्रीसाधुपूर्णिमापक्षे मुख्य भट्टारकश्रीउदयचन्द्रसूरि तत्पट्टे पु (पू) ज्यराज्य (ध्य) श्रीमुनिचन्द्रसूरि तत्पट्टे गच्छाधिराज बारधुरिंधर श्रीश्रीश्री विद्याचन्द्र (?सू) रिंद्रे एषा पुस्तिका लिखापिता ।। सर्वेषां शश्यानां वाचनार्थं ॥ H. R. Kapadia - Ed. Descriptive Catalogue of the Govt. Collection of MSS deposited at the B.O.R.I., Volume XVII B.O.R.I. Poona 1940 A.D. p. 456.१०१८
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