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________________ ११९६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास घड़ी ३८ अपरांतरोहिणीनक्षत्रे सिद्धियोगे रात्रिघ० १२ समये सिंहलग्ने वहमानेऽस्यां शुभग्रहावलोकितकल्याणवतीवेलायां श्रीराजगच्छे श्रीराजप्रभुगुरुसंताने श्रीहेमप्रभसूरिसंताने श्रीहरिप्रभसूरिपट्टे श्रीभट्टारकसंताने श्रीमेरुचन्द्रसूरिजीवितस्वामिमूर्तिः ॥ चिरं जयतु शुभं भवतु ॥ (दाहिने हाथ) श्रीमलयचंद्रसूरिमूर्तिरियं ।। (बायें हाथ) श्रीमुनितिलकसूरिमूर्तिरियं ।। प्राप्तिस्थान - चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खंभात । राजगच्छ से सम्बद्ध अगलालेख वि० सं० १५०३ का है जो पार्श्वनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं दिया गया है। वि० सं० १५०४२५ और १५०९२६ के दो लेख भी राजगच्छ से सम्बद्ध हैं । ये लेख कुंथुनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । महोपाध्याय विनयसागर जी ने इनकी वाचना इस प्रकार दी है : सं० १५०४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे उसिवालज्ञातीय । सुराणागोत्रे । सा० लखणा भा० लखणश्री पु० सा० सकर्मण सा० शिवरामेन श्रीकुन्थुनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजगच्छे । भट्टारिक श्रीपद्माणंदसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ प्रतिष्ठास्थान-पंचायती मंदिर, जयपुर सं० १५०९ वर्षे आषाढ़ सुदि २ सोमे ओसवालज्ञातीय सुराणागोत्रे सा० लखमण भा० लखणश्री पु० सा० सकर्मण भा० सावराजेन श्रीकुन्थुनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजगच्छे । भट्टारक श्रीपद्मानन्दसूरिभिः ॥ श्री ॥ प्रतिष्ठास्थान-पूर्वोक्त उक्त दोनों लेखों में न केवल एक ही माह, तिथि और वार का उल्लेख है बल्कि दोनों ही कुन्थुनात की चौबीसी पर उत्कीर्ण और पंचायती मंदिर, जयपुर में रखी बतलायी गयी हैं। साथ ही इन्हें बनवाने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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