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राजगच्छ
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प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है।२२लेख का मूलपाठ इस प्रकार है :
सं० १४२० वैशाख सुदि १० शुक्रे उपकेशज्ञातीय ........ पितृमातृपूर्वज .................... श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठित श्रीहेमसूरिसंताने श्रीहरिभद्रसूरिभिः ॥
इस लेख में उल्लिखित हरिभद्रसूरि के गुरु हेमचन्द्रसूरि वही व्यक्ति है जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें वि० सं० १३२६ और १३९ (?) की प्राप्त हुई हैं।
माणिक्यसूरि
हेमचन्द्रसूरि वि० सं० १३२६ और १३९ (?) (प्रतिमालेख)
हरिभद्रसूरि वि० सं० १४१० - १४२० (प्रतिमालेख)
राजगच्छ से सम्बद्ध एक लेख वि० सं० १४३८/ई० सन् १३७२ का भी है जो धर्मनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख का पाठ इस प्रकार दिया है । २३
सं० १४३८ वर्षे ज्येष्ठ व० ४ शनौ प्राग्वाट व्य० मोषट भा० सोमलदे पु० झांझणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीगुणसागरसूरिपट्टे श्रीमलयचन्द्रसूरिणामुपदेशेन ॥
प्रतिष्ठास्थान-सुमतिनाथमुख्यबावन जिनालय, मातर
यद्यपि इस लेख में राजगच्छ का उल्लेख नहीं है किन्तु वि० सं० १४९१ /ई० सन् १४३५ के एक लेख से, जो राजगच्छ से सम्बद्ध है, यह स्पष्ट हो जाता है कि गुणसागरसूरि और उनके पट्टधर मलयचन्द्रसूरि राजगच्छ से ही सम्बद्ध थे। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है :
श्रीमन्नृपविक्रमसमयातीतसंवत् १४९१ आषाढ़ादि ९२ वर्षे शाके १३५७ प्रवर्त्तमाने मार्गशीर्षशुक्लत्रयोदश्यां १३ तिथौ शनिवारे कृत्तिकायां
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