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मोढगच्छ और मोढचैत्य निर्ग्रन्थदर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के अन्तर्गत चन्द्रकुल से निष्पन्न गच्छों में मोढगच्छ भी एक है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है मोढेरक [वर्तमान मोढेरा, उत्तर गुजरात] नामक स्थान से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख धातु की दो प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों में प्राप्त होता है। प्रथम लेख पार्श्वनाथ की त्रितीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री साराभाई मणिलाल नवाब ने इस लेख की वाचना दी है', जो कुछ सुधार के साथ इस प्रकार है :
__ "श्रीचन्द्रकुले माढ [मोढ] गच्छे मुक्ति सामिहय श्रावको गोछी नमामि जिनत्रय।"
द्वितीय लेख पार्श्वनाथ की अष्टतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। श्री उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने इसकी वाचना इस प्रकार दी है:
"ॐ श्रीचन्द्रकुले मोढगच्छेनिन्नट श्रावकस्य ।"
उक्त दोनों लेखों में न तो प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य का उल्लेख है और न ही उनकी प्रतिष्ठातिथि/ मिति आदि की चर्चा है। फिर भी उक्त प्रतिमाओं के प्रतिमाशास्त्रीय अध्ययन और लेख की लिपि के आधार पर इन्हें विक्रम सम्वत् की ११वीं शती का माना गया है।
मोढगच्छ से सम्बद्ध तृतीय और अंतिम लेख वि० सं० १२२७ / ई० सन् ११६१ का है जो एक चतुर्विंशतिपट्ट पर उत्कीर्ण है । यह पट्ट आज मधुवन-सम्मेतशिखर स्थित जैन मंदिर में संरक्षित है। श्री पूरनचंद नाहर ने इस लेख की वाचना की है, जो इस प्रकार है :
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