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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पद्मदेवसूरि (वि०सं० १३९३ / ई० स० १३३७) सावदेवसूरि के पट्टधर बुद्धिसागरसूरि (वि० सं० १४२९ / ई० स० १३६३) लब्धिसागरसूरि (वि० सं० १४११ / ई० स० १३५६) देवचन्द्रसूरि (वि० सं० १४३२ / ई० स० १३६६) प्रद्युम्नसूरि के शिष्य शीलगुणसूरि (वि० सं० १४४१ / ई० स० १३८५) देवेन्द्रसूरि (वि० सं० १४६५ / ई० स० १४०९) उदयप्रभसूरि (वि० सं० १४८१-१५२८ /
ई० स० १४२५-१४७२) क्षमासूरि (वि० सं० १४८९ / ई० स० १४३३) शीलगुणसूरि (वि० सं० १५२० / ई० स० १४६४) उदयप्रभसूरि के पट्टधर
राजसुन्दरसूरि (वि० सं० १५३० / ई० स० १५७४) विक्रम संवत् की १८वीं शती के छठे दशक के पश्चात् इस गच्छ से सम्बद्ध अद्यावधि कोई भी साक्ष्य प्राप्त न होने से यह अनुमान किया जा सकता है कि इस समय के पश्चात् यह गच्छ नामशेष हो गया होगा । संभवतः इसकी मुनिपरम्परा समाप्त हो गयी और इसके अनुयायी श्रावकश्राविकायें किन्हीं अन्य गच्छों की सामाचारी का पालन करने लगे होंगे। यह गच्छ कब और किस कारण अस्तित्व में आया ? इसके आदिम आचार्य या प्रवर्तक कौन थे? प्रमाणों के अभाव में ये सभी प्रश्न आज भी अनिर्णित ही रह जाते हैं। सन्दर्भसूची १. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणा, (आबू-भाग ४), भावनगर वि०सं०
२००४, पृष्ठ ८१-८७.
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