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________________ वायडगच्छ १२१३ १२३० में मंत्री वस्तुपाल के संघ में शत्रुजय और गिरनार की यात्रा की थी२३ । विवेकविलास की संक्षिप्त प्रशस्ति में उन्होंने स्वयं को जीवदेवसूरि और उनके गुरु राशिल्लसूरि की परम्परा का बतलाया है । यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या इस गच्छ के प्रारंभिक आचार्यों का भी नाम और पट्टक्रम ठीक उसी प्रकार का रहा जैसा कि १२वीं-१३वीं शती में हम देखते हैं । वस्तुतः यह जीवदेवसूरि 'प्रथम' की ऐतिहासिकता और उनसे सम्बन्धित विभिन्न कथानकों का विकास १३वीं शताब्दी में श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में उस महान् आचार्य के प्रति व्यक्त श्रद्धा और सम्मान का परिणाम माना जा सकता है। १३वीं शताब्दी के पूर्व भी श्वेताम्बर ग्रन्थकारों ने इनका अत्यन्त सम्मान के साथ उल्लेख किया है। हर्षपुरीयगच्छ के लक्ष्मणगणि ने प्राकृतभाषा में रचित सुपासनाहचरिय (सुपार्श्वनाथचरित, रचनाकाल ई० स० ११३७) में अत्यन्त आदर के साथ इनके साहित्यिक क्रियाकलापों का वर्णन किया है" । उपाध्याय चन्द्रप्रभ द्वारा प्रणीत वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति में सस्नेह इनका उल्लेख है२६ । परमारनरेश भोज के दरबारी कवि धनपाल ने अपनी अमर कृति तिलकमंजरी (प्रायः ई० सन् १०२०-२५) में जीवदेवसूरि का अन्य प्रसिद्ध कवियों के साथ सादर स्मरण किया है । इनसे भी पूर्व चन्द्रगच्छीय गोग्गटाचार्य के शिष्य समुद्रसूरि (प्रायः वि० सं० १००६/ई० सन् ९५०) ने जीवदेवसूरि द्वारा प्रणीत जिनस्नात्रविधि पर टिप्पण की रचना की है। ___ वि० सं० १२९८ में महामात्य वस्तुपाल द्वारा शत्रुजय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में अन्य गच्छों के आचार्यों के साथ वायडगच्छीय जीवदेवसूरि का भी नाम मिलता है। उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के आचार्यों के गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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