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________________ १२०८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ४०. त्रिभुवनगिरिस्वामी श्रीमान् स कर्दमभूपति स्तदुप समभूत् शिष्यः श्रीमद्धनेश्वरासज्ञया । अजनि सुगुरुस्त्पट्टेऽस्मात् प्रभृत्यवनिस्तुतः । तदनु विदितो विश्वे गच्छः स 'राज' पदोत्तरः ॥ ५ ॥ प्रभावकचरित, प्रशस्ति, श्लोक ५. ४१. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या ५. ४२. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या ४. ४३. पं० महेन्द्रकुमार शास्त्री, पूर्वोक्त, पृष्ठ ४६-४७. ४४. द्रष्टव्य संदर्भ संख्या १. ४५. वही ४६. मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ३३५. द्रष्टव्य-संदर्भ संख्या १. अन्यच्च नेमिचन्द्रा गुणाकरा: पार्श्वदेवनामनः । एते त्रयोऽपि गणयो विपश्चितो मुख्य निजशिष्याः ॥ ३०॥ साहाय्यं कृतवन्तो मम लेखन-शोधनादिकृत्येषु । आधानोद्धरणे च प्रमादविकला: कलाकुशलाः ॥ ३१ ॥ मुनि पुण्यविजय-संपा० आख्यानकमणिकोश-वृत्तिसह (प्राकृत ग्रन्थ परिषद, ग्रन्थांक ५, वाराणसी १९६२ ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ ३६९-३७०. ४९. रूपेन्द्रकुमार पगारिया-संपा० मुनिसुव्रतस्वामिचरित (लालभाई दलपतभाई ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १०६, अहमदाबाद १९८९ ई०) प्रशस्ति, पृष्ठ ३३७ - ३४१. 40. Report on the Antiquities of Kathiawad and Kacch (1874-75), Archaeological Survey of Western India, Reprint, Varanasi-1971, p. 167. ५१. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर १९२१ ई०, लेखांक ५२. ५२. ढांकी और भोजक, पूर्वोक्त, ५३. मुनि कल्याणविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३८. ५४. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४८९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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