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________________ सरवालगच्छ १२७९ नहीं है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त प्रतिमा भी इन्हीं की प्रेरणा से निर्मित करायी गयी रही होगी। वि० सं० १२८६/ई० सन् १२३० में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि सरवालगच्छ से सम्बद्ध एक ही साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध है और वह है पिण्डनियुक्ति की शिष्यहितावृत्ति की प्रशस्ति१६ । इससे ज्ञात होता है कि सरवालगच्छीय ईश्वरगणि के शिष्य वीरगणि अपरनाम समुद्रघोषसूरि ने वि० सं० ११६०/ ई० सन् ११०४ में दधिपद्र (वर्तमान दाहोद, गुजरात राज्य) में इस कृति की रचना की। इस कार्य में उन्हें अपने गुरु-भ्राताओं-महेन्द्रसूरि, पार्श्वदेवगणि और देवचन्द्रगणि से सहायता प्राप्त हुई । इसे नेमिचन्द्रसूरि और जिनदत्तसूरि ने अणहिलपुरपत्तन (वर्तमान पाटन, उत्तर गुजरात) में संशोधित किया । वृत्तिकार वीरगणि ने इस प्रशस्ति में अपनी दीक्षा के पूर्व अपने गृहस्थजीवन का उल्लेख करते हुए अपने पिता का नाम वर्धमान और माता का नाम श्रीमती बतलाया है। सरवालगच्छीय ईश्वरगणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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