SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६० जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ५. जिनभद्रसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि [वि० सं० १५०३ - १५२०] ६. धर्मशेखरसूरि के पट्टधर विशालराजसूरि [वि० सं० १५२५ - १५३०] ७. वीरप्रभसूरि [वि० सं० १४६४ - १५०६] ८. वीरप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि [वि० सं० १५१० - १५३३] अभिलेखीय साक्ष्यों से पूर्णिमागच्छ के अन्य बहुत से मुनिजनों के नाम भी ज्ञात होते हैं, परन्तु वहां उनकी गुरु-परम्परा का नामोल्लेख न होने से उनके परस्पर सम्बन्धों का पता नही चल पाता । साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य परम्परा [तालिका संख्या १] के साथ भी इन मुनिजनों का पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, फिर भी इनसे इतना तो स्पष्ट रूप से सुनिश्चित हो जाता है कि इस गच्छ के मुनिजनों का श्वेताम्बर जैन समाज के एक बड़े वर्ग पर लगभग ४०० वर्षों के लम्बे समय तक व्यापक प्रभाव रहा। ___अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या ३ का साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरुशिष्य परम्परा की तालिका संख्या १ के साथ परस्पर समायोजन संभव नहीं हो सका, किन्तु तालिका संख्या १ और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका संख्या २ के परस्पर समायोजन से पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो विस्तृत तालिका बनती है, वह इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy