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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास चुके हैं कि टीकाकार भावचन्द्र ने पद्मचन्द्र को चन्द्रकीर्तिसूरि का शिष्य और अपना गुरु बतलाया है। इस प्रकार सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रथमादर्शप्रति के लेखक हर्षकीर्ति और उक्त कृति की रचना हेतु आचार्य चन्द्रकीर्ति को प्रेरित करने वाले पद्मचन्द्र परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं।
चन्द्रकीतिसूरि (वि० सं० १६२३ में
सारस्वतव्याकरणदीपिका के रचनाकार)
पद्मचन्द्र
हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरण (सारस्वतव्याकरण दीपिका की रचना के लिए दीपिका की प्रथमादर्श
प्रार्थना करने वाले) प्रति लेखक)
भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति
अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) हर्षकीर्ति द्वारा रचित कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है, जिसका संशोधन उनके शिष्य महोपाध्याय देवसुन्दर ने किया। इसी प्रकार इनके एक शिष्य शिवराज ने अपने गुरु द्वारा रचित बृहद्शांतिस्तव की वि० सं० १६७६ में प्रतिलिपि की२।।
वि० सं० १६५६ में लिखी गयी सिरिवालचरिय (श्रीपालचरित्र) की प्रतिलेखन प्रशस्ति१३ में भी इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, जो इस प्रकार हैं -
चन्द्रकीर्तिसूरि मानकीर्ति
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