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________________ ११८ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास बतलाया जाया है। इनकी दूसरी कृति सांतिनाहचरिय[ शांतिनाथचरित] वि० सं० ११६०/ई० सन् ११०४ में स्तम्भतीर्थ (वर्तमान खंभात) में रची गयी है।" यह १२००० श्लोक परिमाण है। १६ वें तीर्थंकर पर प्राकृत भाषा में रची गयी कृतियों में यह सबसे प्राचीन और विशाल है। देवचन्द्रसूरि अपने समय के एक प्रतिभाशाली और विद्वान् आचार्य थे। अपने भावी शिष्य के रूप में एक शैव धर्मानुययायी गृहस्थ की अनुपस्थिति में उसकी अनुमति के बिना उसके अल्पवयस्क पुत्र को प्राप्त करना तथा इससे उत्पन्न तत्कालिक समस्याओं का मंत्री उदयन के सहयोग से सर्वमान्य हल ढूंढ निकालना इनकी विलक्षण प्रतिभा का परिचायक है। हेमचन्द्रसूरि - पूर्वोक्त आचार्य देवचन्द्रसूरि के सुविश्रुत शिष्य और पट्टधर आचार्य हेमचन्द्रसूरि श्वेताम्बर जैन परम्परा में 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से प्रसिद्ध हैं और इनका काल हैमयुग या सुवर्णयुग के नाम से जाना जाता है। विद्या और साहित्य के क्षेत्र में हेमचन्द्र का योगदान अद्वितीय है। इन्होंने अपने बारे में स्वरचित व्याश्रयमहाकाव्य [संस्कृत और प्राकृत], सिद्धहेमशब्दानुशासन की प्रशस्ति तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रशस्ति में कुछ जानकारी दी है, किन्तु उत्तरकालीन विभिन्न श्वेताम्बर जैन ग्रन्थकारों ने अपनी कृतियों में इनके जीवनचरित पर पर्याप्त प्रकाश डाला है ।२° इनका विवरण इस प्रकार है : ग्रन्थ रचनाकार १. मोहराजपराजय मंत्री यशश्चन्द्र, रचनाकाल वि० सं० १२२८-३२/ ई० सन् ११७२-७६ २. कुमारपालप्रतिबोध वडगच्छीय सोमप्रभसूरि, रचनाकाल वि० सं० १२४१ / ई० सन् ११८३ ३. प्रभावकचरित राज्यगच्छीय प्रभाचन्द्रसूरि, रचना काल वि० सं० १३३४ । ई० सन् १२७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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