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मडाहडागच्छ
११६५ साहित्यिक साक्ष्य
मडाहडागच्छ के सम्बद्ध प्रथम साहित्यिक साक्ष्य है कालिकाचार्यकथा की ९ श्लोकों की दाताप्रशस्ति । यह प्रति श्री अगरचन्द नाहटा के संग्रह में संरक्षित है । इस प्रशस्ति के प्रथम ६ श्लोकों में सितरोहीपुर (वर्तमान सिरोही, राजस्थान) निवासी श्रावक तिहुणा-महुणा के पूर्वजों का उल्लेख है। अन्तिम तीन श्लोकों में उक्त श्रावक द्वारा लक्षभूपति [राणालाखा अपरनाम राणालक्षसिंह वि० सं० १४६१-१४७६ / ईस्वी सन् १४०५१४२०] के शासनकाल में महाहडागच्छीय आचार्य कमलप्रभसूरि के शिष्य वाचनाचार्य गुणकीर्ति को कल्पसूत्र के साथ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति भेंट में देने का उल्लेख है।
___ मडाहडागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की पूर्व प्रदर्शित सूची [लेख क्रमांक ६२, वि० सं० १५२०] में हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि का नाम आ चुका है। यद्यपि एक मुनि या आचार्य का नायकत्त्वकाल सामान्य रूप से ३०-३५ वर्ष माना जाता है, किन्तु कोई - कोई मुनि और आचार्य दीर्घजीवी भी होते हैं, इसी कारण स्वाभाविक रूप से उनका नायकत्वकाल सामान्य से कुछ अधिक अर्थात् ४०-४५ वर्ष का होता रहा । अतः वि० सं० की १५वीं शताब्दी के तृतीय चरण में भी इन्हीं कमलप्रभसूरि का विद्यमान होना असंभव नहीं लगता । इसलिए उक्त प्रतिमालेख [वि० सं० १५२०] में उल्लिखित धनप्रभसूरि के गुरु कमलप्रभसूरि उपरोक्त कालिकाचार्यकथा के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति [लेखनकाल वि० सं० १४६१-१४७६] में उल्लिखित कमलप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं।
श्री अगरचन्द नाहटा ने अपनी सिरोही यात्रा के समय वहाँ स्थित मडाहगच्छीय उपाश्रय में रहने वाले एक महात्मा-गृहस्थ कुलगुरु से ज्ञात इस गच्छ के मुनिजनों की एक नामावली प्रकाशित की है, जो इस प्रकार
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