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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
७. वही ८. वही, भाग-१, पृष्ठ ३९७. ९. पिप्पलगच्छगुर्वावली, सम्पा०, भंवरलाल नाहटा, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक
ग्रन्थ, बम्बई १९५६ ई०, हिन्दी खण्ड, पृष्ठ १३-२२. पूर्वं डींडिलाग्राम मूलनायकः श्री महावीरः संवत् १२०८ वर्षे पिप्पलगच्छीय श्रीविजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितः पश्चात् वीर पल्या प्रा० साह सहदेव कारिते प्रासादे पिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरिभिः स्थापितः । संवत् १४६५ वर्षे । प्रतिष्ठा स्थान - जैन मंदिर कोटरा, सिरोही, पूरनचन्द नाहर - जैनलेखसंग्रह, भाग-१, कलकत्ता १९१८
ई०, लेखांक ९६६। १०अ. मधुसूदन ढांकी अने हरिशंकर प्रभाशंकर शास्त्री - घोघानो जैन प्रतिमानिधि, श्री
फार्बस गुजराती सभा, जनवरी-मार्च १९६५ ई०, पृष्ठ १९-२२. ११. धनु धनु धर्मदेवसूरि, सारंग रा प्रतिबोधिउ।
उगमतई नितु सूरि, सुहगुरु नितु नितु पणमीए ॥१०॥ त्रिनि भव सारंग राय, देवाएसिंहिं गुरि कहीय । घूघल जंग विक्खाय, पडिबोही त्रिनि भव कहीया ॥११॥
पिप्पलगच्छगुर्वावलि-गुरहमाल, द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. ११अ. द्रष्टव्य-पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों
की सूची - लेख क्रमांक ६. १२. वही, लेख क्रमांक ६२, ६६, ६८, ७९. १३. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ९. १४. द्रष्टव्य, लेख क्रमांक १५६. १५. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ६-७. १६. संदर्भ क्रमांक ८. १७. पृथ्वीचंद्रचरित - संपा० मुनि रमणीकविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, ग्रन्थांक १६,
अहमदाबाद-वाराणसी १९७२ ई० सन्. १८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णी की प्रशस्ति
C.D. Dalal and L.B. Gandhi - Descriptive Catalogue of MSS in the Jaina Bhandars at Pattan, G. 0. S. No. 76, Baroda - 1937A.D. pp. 389-90.
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