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नागपुरीयतपागच्छ
६७३ सं० १५५१ व० मा० २ सोमे उ० ज्ञा० सोनीगोत्रे सं० चांपा भा० चांपलदे पु० हया रामा हृदा पितृनि० आ० श्रे० श्री शीतलनाथ बिं० कारि० प्रति० नागुरी (नागपुरीय) तपाग० भ० सोमरत्नसूरिभिः ।।।
प्रतिष्ठा स्थान - ऋषभदेव जिनालय, मालपुरा
आदिनाथ जिनालय, नागौर में एक शिलापट्ट पर उत्कीर्ण वि० सं० १५९६ का एक खंडित अभिलेख प्राप्त हुआ है । इस अभिलेख में राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्लकीर्तिसूरि का नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ इस प्रकार है:
॥ॐ॥ स्वास्तिश्रीसंवत् १५९६ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे नवमी तिथौ सोमवारे नागपुरकोटे श्रीमालवंशे संकियाप्य (?) गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० चूहड़ सं० लक्ष्मीदास सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भार्या सं० सरूपदे नाम्नी हे............... ........................श्री राजरत्नसूरिपट्टे सं० श्रीरत्नकीर्तिसूरि प्रतिष्ठिता ॥ ............
शिलापट्ट प्रशस्ति, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर
उक्त अभिलेख से राजरत्नसूरि और उनके शिष्य रत्नकीर्तिसूरि किस गच्छ के थे, इस बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं होती किन्तु उक्त जिनालय में ही मूलनायक के रूप में स्थापित आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख से इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । महोपाध्याय विनयसागर जी ने इस लेख का मूलपाठ दिया है, जो निम्नानुसार है: ॥ॐ॥ सं० १५९६ वर्षे फाल्गुन सुदि नवम्यां तिथौ .........
........... गोत्रे सं० नोल्हा पु० सं० तेजा पु० सं० चूहड भा० सं० रमाइ पु सं० लक्ष्मीदास सं० सं० भवानी सं० लक्ष्मीदास भा०
....... कल्याणमल्ल तत्र लक्ष्मीदास भार्या सरूपदेव्यौ कर्मनिर्जरार्थं श्री आदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं .......
...... भट्टारक श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे भट्टारिक
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