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________________ बृहद्गच्छ ११२७ इनमें प्रथम दो ग्रन्थ सामान्य मुनि अवस्था में रचे गये थे, इसी लिये इन ग्रन्थों की अन्त्य प्रशस्तियों में इनका नाम देविन्द लिखा मिलता है। उत्तराध्ययनवृत्ति और रत्नचूड़कथा की प्रशस्तियों में देवेन्द्रगणि नाम मिलता है, जिससे स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थ गणि "पद" मिलने के पश्चात् रचे गये । उक्त दोनों ग्रन्थों के कुछ ताड़पत्र की प्रतियों में नेमिचन्द्रसूरि नाम भी मिलता है । अन्तिम ग्रन्थ महावीरचरियं वि० सं० ११४१/ ई० सन् १०८५ में रचा गया है। उक्त ग्रन्थों की प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि इनके गुरु का नाम आम्रदेवसूरि और प्रगुरु का नाम उद्योतनसूरि था, जो सर्वदेवसूरि की परम्परा के थे। ___मुनिचन्द्रसूरि३२ - आप उपरोक्त नेमिचन्द्रसूरि के सतीर्थ्य थे । आचार्य सर्वदेवसूरि के शिष्य यशोभद्रसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि थे। यशोभद्रसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की एवं नेमिन्द्रसूरि से आचार्य पद प्राप्त किया । ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने कुल ३१ ग्रन्थ रचे थे। इनमें से आज १० ग्रन्थ विद्यमान हैं जो इस प्रकार हैं - १. अनेकान्तजयपताका टिप्पनक २. ललितविस्तरापञ्जिका ३. उपदेशपद-सुखबोधावृत्ति ४. धर्मबिन्दु-वृत्ति ५. योगबिन्दु-वृत्ति ६. कर्मप्रवृत्ति-विशेषवृत्ति ७. आवश्यक [ पाक्षिक ] सप्ततिका ८. रसाउलगाथाकोष ९. सार्धशतकचूर्णी १०. पार्श्वनाथस्तवनम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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