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१०४८ तालिका- १
साधुकीर्ति
वा० शिवसुन्दर
(वि० सं० १५९८
ई० स० १५४२ में
रसरत्नाकर के
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
विमलसूरि
(वि० सं० १५७६ - ई० स०
१५२०)
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गुणमाणिक्य
| भावकवि
(अंबडरास और
हरिचन्द्ररास के कर्ता)
प्रतिलिपिकार)
युगादिदेवस्तवनम् की वि० सं० १६१० - ई० स० १५५४ में लिखी गयी प्रति की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ब्रह्माणगच्छीय नयकुंजर ने स्वयं को गुणसुन्दरसूरि का शिष्य बतलाया है ।
गुणसुन्दरसूरि
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नयकुंजर (वि० सं० १६१० ई० स० १५५४ में
युगादिदेवस्तवन प्रतिलिपिकार)
ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण का साक्ष्य होने से यह प्रशस्ति इस गच्छ के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है।
जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है ब्रह्माणगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य मिलते हैं जो वि० सं० १९२४ से वि० सं० १५९२ तक के हैं । इनका विवरण इस प्रकार है :
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