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________________ १०१६ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं । उनका विवरण इस प्रकार है : १. धर्मचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि : I धर्मचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित १ प्रतिमा मिली है। जिस पर वि० सं० १४२१ का लेख उत्कीर्ण है । इनके पट्टधर धर्मतिलकसूरि का ९ जिनप्रतिमाओं पर नाम मिलता है । ये प्रतिमायें वि० सं० १४२४ से वि० सं० १४५० के मध्य प्रतिष्ठापित की गयी थीं। इसके अतिरिक्त एक ऐसी भी प्रतिमा मिली हैं, जिस पर प्रतिष्ठावर्ष नहीं दिया गया है। २. धर्मतिलकसूरि के पट्टधर हीराणंदसूरि : वि० सं० १४८३ और १५०२ में प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं पर इनका नाम मिलता है । ३. हीराणंदसूरि के पट्टधर देवचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें [वि० सं० १५१६ और वि० सं० १५१८] मिली है। ४. अभयचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि : अभयचन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ३ प्रतिमाओं [वि० सं० १४२४, १४५८ और १४६६ ] का उल्लेख मिलता है । इनके पट्टधर रामचन्द्रसूरि का नाम वि० सं० १४९३ के प्रतिमालेख में मिलता है । ५. रामचन्द्रसूरि के पट्टधर पुण्यचन्द्रसूरि : इनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ५ प्रतिमायें मिली है, जिन पर वि० सं० १५०४, १५०७, १५०८, १५२० और १५२४ के लेख उत्कीर्ण हैं। ६. रामचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिचन्द्रसूरि : आबू स्थित लूणवसही की एक देवकुलिका पर उत्कीर्ण वि० सं० १४८६ के लेख में मुनिचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003615
Book TitleJain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2009
Total Pages698
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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