________________
- १० -
पर्यायवद् द्रव्यम्-५. ३७ । इन दोनों के अतिरिक्त द्रव्य का लक्षणविषयक एक तीसरा सूत्र दिगम्बर सूत्रपाठ में है-सद् द्रव्यलक्षणम्-५. २९ । ये तीनों दिगम्बर सूत्रपाठगत सूत्र कुन्दकुन्द के पंचास्तिकाय की निम्न प्राकृत गाथा में पूर्णरूप से विद्यमान है :
दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ॥१०॥ इसके अतिरिक्त कुन्दकुन्द के प्रसिद्ध ग्रन्थों के साथ तत्त्वार्थसूत्र का जो शाब्दिक तथा वस्तुगत महत्त्वपूर्ण सादृश्य है, वह आकस्मिक तो नही ही है।
(ख ) उपलब्ध 'योगसूत्र' के रचयिता पतजलि माने जाते है। व्याकरण-महाभाष्य के कर्ता पतंजलि ही योगसूत्रकार हैं या दूसरे कोई पतंजलि, इस विषय में अभी निश्चयपूर्वक नही कहा जा सकता। यदि महाभाष्यकार और योगसूत्रकार पतंजलि एक हैं तो योगसूत्र विक्रम पूर्व पहलो-दूसरी शताब्दी की रचना मानी जा सकती है। योगसूत्र का 'व्यासभाष्य' कब की रचना है यह भी निश्चित नही, फिर भी उसे विक्रम की तीसरी शताब्दो से प्राचीन मानने का कोई कारण नही है।
योगसूत्र और उसके भाष्य के साथ तत्त्वार्थ के सूत्रों और उनके भाष्य का शाब्दिक तथा आर्थिक सादृश्य बहुत है और वह आकर्षक भी है, तो भी इन दोनों में से किसी एक पर दूसरे का प्रभाव है यह ठीकठीक कहना सम्भव नही, क्योकि तत्त्वार्थसूत्र और भाष्य को योगदर्शन से प्राचीन जैन आगमग्रन्थों की विरासत मिली है, उसी प्रकार योगसूत्र और उसके भाष्य को पुरातन साख्य, योग तथा बौद्ध आदि परम्पराओ की विरासत प्राप्त है। फिर भी तत्त्वार्थ-भाष्य में एक स्थल ऐसा है जो जैन अगग्रन्थों में इस समय तक उपलब्ध नही है और योगसूत्र के भाष्य मे उपलब्ध है।
पहले निमित हई आय कम भी हो सकती है अर्थात् बीच में टूट भी सकती है और नहीं भी, ऐसी चर्चा जैन अंगग्रन्थों मे है । परन्तु इस चर्चा में आयु के टूटने के पक्ष को उपपत्ति करने के लिए भीगे कपड़े तथा सूखी घास का उदाहरण अंगग्रन्थो मे नही, तत्त्वार्थ-भाष्य में ये
१. इसके सविस्तर परिचय के लिए देखें-हिन्दो योगदर्शन की प्रस्तावना, पृष्ठ ५२ तथा आगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org