Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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होनेवाले भी रूप रस आदि पर्याय पर्यायार्थिक नयको अपेक्षा जिसतरह जुदे जुदे माने जाते हैं उसी दू|| प्रकार यद्यपि आत्मामें ज्ञान और दर्शन पर्याय एक साथ प्रकट होते हैं तो भी पर्यायोंकी ओर दृष्टि |||| भाषा है डालनेपर ज्ञान पर्याय जुदी और दर्शन पर्याय जुदी है इसलिये पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा ज्ञान और
दर्शन दोनों भिन्न भिन्न ही हैं एक नहीं । अथवा. पुद्गल द्रव्यमें एक साथ उत्पन्न होनेवाले भी रूप रस आदि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा कथंचित्
एक और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा कथंचित् अनेक हैं क्योंकि रूप आदि पर्यायोंमें जिस समय पर्या|| यार्थिक नयका गौणपना और द्रव्यार्थिक नयका मुख्यपना रक्खा जायगा उस समय रूप आदि पर्या॥ योंकी ओर दृष्टि जायगी नहीं, द्रव्यकी ओर ही दृष्टि जायगी और उससे रूप रस आदि स्वरूप अनादि
पारिणामिक पुद्गल द्रव्य है यह बोध होगा वहांपर भिन्न २ रूपसे रस रूप आदि पर्यायोंका बोधन होगा इसलिये द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा रूप रस आदि एक ही हैं तथा जिससमय उन्हीं रूप आदिई गुणोंमें द्रव्यार्थिक नयका गौणपना और पर्यायार्थिकनयका प्रधानपना माना जायगा उससमय द्रव्यको || ओर दृष्टि न जाकर पर्यायोंकी ओर दृष्टि जायगी और उससे यह रूप है और ये रस आदि पर्यायें हैं। || यह बोध होगा किंतु वे सब एक हैं यह बोध न हो सकेगा इसलिये पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा रूप रस || |आदि भिन्न भिन्न हैं। उसीप्रकार ज्ञान दर्शनमें भी जिससमय पर्यायार्थिक नयको गौण और द्रव्यार्थिक ||
नयको प्रधान माना जायगा उससमय पर्यायोंकी ओर दृष्टि न जाकर द्रव्यकी ओर ही दृष्टि जायगी है और अनादि पारिणामिक ज्ञान दर्शनस्वरूप एक जीव द्रव्य है यह बोध होगा अर्थात् ज्ञान भी आत्मा की हैमाना जायगा और दर्शन भी आत्मा माना जायगा इसलिये द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा ज्ञान दर्शन
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