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( ७७ ) इस मैल को धो डालने के लिये और शास्ता की स्मृति के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये बुद्ध के प्रमुख शिष्यों ने उनके वचनों का संगायन करना आवश्यक समझा। सुभद्र जैसे भिक्षुओं के असंयम को देखकर आर्य महाकाश्यप की मानसिक व्यथा के दर्शन हम उनके इन गब्दों में करते हैं, "आयुष्मानो! आज हमारे सामन अधर्म बढ़ रहा है, धर्म का ह्रास हो रहा है। अ-विनय बढ़ रहा है, विनय का ह्रास हा रहा है । आओ आष्युमानो! हम धम्म और विनय का संगायन करें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये एक सभा की गई। यह सभा बद्ध-परिनिर्वाण के चौथे मास में हुई। बुद्ध-परिनिर्वाण वैशाख-पूर्णिमा को हुआ था, अतः यह सभा सम्भवतः श्रावण मास में हुई । आषाढ़ का मास तैयारी में लगा । इस सभा में ५०० भिक्षु सम्मिलिन हुए. अतः बौद्ध अनुश्रुति में यह मभा 'पंचशतिका' नाम से भी विख्यात है। सभासदों में एक आनन्द भी थे। सभापतित्व का कार्य महाकाश्यप को सौंपा गया। सभा की कार्यवाही में, जैसा स्पष्ट है, बुद्ध-वचनों का संगायन और संग्रह ही मुख्य था। सभापति महाकाश्यप ने उपालि से विनय-सम्बन्धी और आनन्द से धर्म-सम्बन्धी प्रश्न पूछे और उनके उत्तरों का दुसरे भिक्षुओं ने संगायन किया। उदाहरणतः महाकाव्यप ने उपालि से पूछा--"आवुम उपालि ! प्रथम पाराजिक का उपदेश कहां दिया गया ?'' "भन्ते ! वैशाली में'' "किस व्यक्ति के प्रमंग म?' "कलन्द के पुत्र म दिन्न के प्रसंग में "किस बात को लेकर?" "मैथुन को लेकर' । इसी प्रकार आनन्द से बद्ध-उपदेशों (युत्तों) के विषय में प्रश्न पूछे गये, जिनके उन्होंने उत्तर दिये । इस प्रकार निश्चिन धम्म और विनय का सारी मभा ने संगायन किया, महाकाश्यप के प्रस्ताव पर---धम्मच विनयञ्च संगायय्याम।
उपर्युक्त सभा का ऐतिहासिक आधार और महत्व क्या है. ओर उसमें जिस 'धम्म' और 'विनय का स्वरूप निश्चित किया गया. उसका हमारे आज प्राप्त
१. पुरे अधम्मो दिप्पति, धम्मो पटिबाहियति । अविनयो दिप्पति, विनयो
पटिबाहियति । हन्द मयं आवुसो धम्मं च विनयं च संगायाम । विनयपिटक-चुल्लवग्ग। २. देखिये महावंश (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद) पृष्ठ ११
(परिचय)