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( ३८५ ) ३. सौमनस्य से युक्त, ज्ञान-विप्रयुक्त, असांस्कारिक ४. सौमनस्य से युक्त, ज्ञान-विप्रयुक्त, ससांस्कारिक ५. उपेक्षा से युक्त, ज्ञान-संप्रयुक्त, असांस्कारिक ६. उपेक्षा से युक्त, ज्ञान-संप्रयुक्त, ससांस्कारिक ७. उपेक्षा से युक्त, ज्ञान-विप्रयुक्त, असांस्कारिक ८. उपेक्षा मे युक्त, ज्ञान-विप्रयुक्त, समांस्कारिक ग. रूपावचर-भूमि के पाँच क्रिया-चित्त-ये चित्त भी पूर्वोक्त रूपावचर-भूमि
के ५ कुशल-चित्तों और विपाक-चित्तों के समान हैं, अन्तर केवल इतना है कि क्रिया-चित्त होने की अवस्था में ये अर्हत् के चित्त की अवस्था के सूचक हैं, अतः भविष्य में विपाक पैदा नहीं करते । अर्हत् भी इन पाँच ध्नान की अवस्थाओं को प्राप्त करता है किन्तु ये उसके लिये विपाक पैदा नहीं करतीं।
इनका उल्लेख पहले दो बार हो चुका है, अतः यहाँ अनावश्यक है। घ. अरूपावचर-भूमि के चार क्रिया-चित्त--ये चित्त भी पूर्वोक्त अरूपावचर
भूमि के ४ कुशल-चित्तों और विपाक-चित्तों के समान हैं। अन्तर भी यही है कि क्रिया-चित्त होने की अवस्था में ये अर्हत के चित्त की अवस्था के सूचक हैं, अत: भविष्य में विपाक पैदा नहीं करते । अर्हत् अरूप-लोक की इन चार अवस्थाओं को प्राप्त करता है किन्तु ये उसके लिये विपाक पैदा नहीं करतीं। इनका भी उल्लेख पहले दो बार हो चुका है, अतः यहाँ पुनरावृत्ति करना निरर्थक है।
उपर्युक्त प्रकार चित्त के ८९ प्रकारों का कुशल, अकुशल और अव्याकृत चित्तों के रूप में उनकी उपर्युक्त ४ भूमियों पर विश्लेषण 'धम्मसंगणि' में किया गया है । अधिक सुगम बनाने के लिये इनका इस तालिका के द्वारा अध्ययन किया जा सकता है