________________
( ५४६ )
अध्याय में ) लेंगे, क्योंकि वह काफी विस्तृत है और अलग विवेचन की ही अपेक्षा रखती है । पालि में इन्हीं शताब्दियों में ही धर्म-शास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना हुई । तेरहवीं शताब्दी में बरमी भिक्षु सारिपुत्त ने 'धम्मविलास - धम्मसत्थ' नामक ग्रन्थ की रचना की जो वहाँ संविधान सम्बन्धी मामलों में अत्यन्त प्रामाणिक माना जाता है । इसी के आधार पर सोलहवीं शताब्दी में 'मनु-सार' की रचना हुई, जिसके आधार पर अठारहवीं शताब्दी में 'मनु-वण्णना' की रचना हुई । पुनः इसी के आधार पर उन्नीसवीं शताब्दी में 'मोह-विच्छेदनी' लिखी गई । पालि के इस धर्म-शास्त्र सम्बन्धी विकास का इतिहास पालि और बरमी बौद्ध धर्म के स्वरूप को समझने के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ साथ इस दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वह वौद्ध सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में मनुस्मृति के प्रभाव का माध्य देता है, जिस पर ही सम्पूर्ण बरमी धर्म - शास्त्र साहित्य, जो अंगतः बरमी भाषा और अंशत: पालि में निबद्ध है, आधारित ह । काव्य, व्याकरण, वंश और धर्मशास्त्र के अलावा छन्दः शास्त्र, काव्य-शास्त्र, कोश आदि पर इन शताब्दियों में लिखे गये साहित्य का भी इस प्रकरण में विवेचन नहीं किया गया है । उसका संक्षेपतः निदर्शन हम आगे के प्रकरणों में करेंगे ।