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ति ।" इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है " जो धर्म हेतुओं से उत्पन्न हूँ उनके हेतु को तथागत बतलाते हैं और उनके निरोध को भी उन महाश्रमण का यही मत हैं, जैसे कि चार सम्यक् प्रधान, चार स्मृति - प्रस्थान, चार आर्य सत्य चार वैशारद्य, पाँच इन्द्रिय, पाँच चक्षु, छह असाधारण, दस बल, चौदह बुद्धज्ञान, एवं अठारह बुद्ध धर्म ।" इस अवतरण का प्रथम भाग अर्थात् यह अंग " जो धर्म हेतुओं से उत्पन्न है उनके हेतु को तथागत बनलाते हैं और उनके निरोध को भी, यही उन महासमण का मत है" बुद्ध के सारे मन्तव्य को जैसे एक संक्षिप्त -मूत्र में ही रख देता है । पालि- त्रिपिटक में भी यह बहुत प्रसिद्ध है । असजि ( अश्वजित् ) नामक भिक्षु ने यही कहकर प्रथम बार सारिपुत्र को बुद्ध - मन्तव्य का परिचय दिया था । वाद के अंश में बोधिपक्षीय धर्मों का परिगणन कराया गया है जो बुद्ध के नैतिक आदर्शवाद की एक परिपूर्ण सूची है । स्थविरवाद बौद्ध धर्म बुद्ध धर्म के नैतिक सिद्धांतों को आधार मानकर भगवान् बुद्ध द्वारा उपदिष्ट बोधिपक्षीय धर्मों को ही उनका मुख्य मन्तव्य मानता है । पाँचवीं छठीं शताब्दी में बरमी बौद्ध धर्म की प्रगति पर यह स्वर्ण-पत्र लेख अच्छा प्रकाश डालता है । द्वितीय स्वर्णपत्र पर भी प्रथम लेख के आदि का अंश अंकित है किन्तु उसके बाद यहाँ त्रिरत्न की वन्दना और अंकित है, यथा-' - 'तिपि सो भगवा अरहं सम्मा सम्बुद्धो विज्जाचरणसम्पन्नो सुगतो लोकविद् अनुत्तरो पुरसम्म सारथि सत्था देव मनुस्सानं बुद्धो भगवाति । यह भी पालि त्रिपिटक का ही एक उद्धरण है । इसका हिन्दी अनुवाद है " वे भगवान् अर्हत्, सम्यक् मम्बुद्ध, विद्या चरण सम्पन्न, सुगत, लोकविद, अद्वितीय पुरुष-दम्य सारथी, देव और मनुष्यों के शास्ता, भगवान् बुद्ध हैं ) ' बुद्ध-भक्ति के उद्गारस्वरूप ही ये लेख लिखे गये है ।
: मब्ज़ा का पाँचवीं छठी शताब्दी का स्वर्णपत्र लेख
बरमा में प्रोम के पास मजा नामक स्थान पर वीस स्वर्ण-पत्रों पर लिखा हुआ एक पालि अभिलेख पाया गया है । यह भी दक्षिण भारत की कन्नड़तेलगू प्रकार की लिपि में लिखा हुआ है । इस अभिलेख में विनय और