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है । एक और प्रमाण भी इन्हीं स्तूपों से इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए मिलता है । भारत और माँची की पापाण- वेष्टनियों पर बौद्ध गाथाओं के चित्र अंकित हैं, जो जातक की अनेक गाथाओं से विचित्र समानता रखते हैं । इतना ही नहीं, भारत - स्तूप में तो कुछ जातक - गाथाओं के नाम तक भी उल्लिखित है, जो इस प्रकार हैं ( १ ) वितुर पुनकिय ( २ ) मिग (३) नाग (४) यवमभकिय (५) मुगपकय, (६) लतुवा (3) छन्दन्तिय ( ८ ) इसिसिंगिय, (९) यं वमणो अवसि, (१०) हंस, (११) किनर ( १२ ) इसिमिगो (१३) जनोको राजा, (१४) मिवला देवी (१५) उद (१६) सेछ ( १७ ) सुजतो गहुतो (१८) विडल जातक (१९) ककुट जातक ( २० ) महादेविय (२१) भिम और (२२) हरनिय । इन जातकों की गाथाएँ और कहीं कही नाम भी आज प्राप्त 'जातक' की इन कहानियों से समानता रखते हैं (१) विधूर पंडित ( २ ) निग्रोध (३) कक्कट, (४) महाउम्मग्ग ( ५ ) मूगपक्ख ( ६ ) लनुकिका (७) छद्दन्त ( ८ ) अलम्बुम ( ९ ) अन्धभूत, (१०) नच्च, (११) चन्द, (१२) किन्नर, (१३) मिगपोतक, (१४) महाजनक, (१५) दब्ब-पुप्फ, (१६) दूभि मक्कट, (१७) सुजात, (१८) कुक्कुट, (१९) मखादेव और ( २० ) भिस जातक | भारत स्तूप में कहीं कहीं दृश्य तो अंकित है किन्तु नीचे उनके नाम नहीं दिये गये हैं । फिर भी इन चित्रों से विदित होता है कि वे पालिजातक की कुछ कहानियों के चित्रों को ही अंकित करते हैं । इस प्रकार की 'जातक' की कहानियाँ जो यहाँ अंकित हैं, ये हैं (?) कुरूंग-मिंग ( २ ) सन्धि-भेद, (३) असदिस, (४) दसरथ, (५) महाकपि, (६) चम्मसतक, (७) आरामदुमक और (८) कपोत जातक । अतः इन सब साक्ष्यों मे स्पष्ट है कि न केवल पालि - त्रिपिटक बल्कि उसके उसके कुछ विशिष्ट ग्रन्थ भी अपने उसी स्वरूप में, जैसे वे आज हैं, तृतीय - द्वितीय शताब्दी ईसवी पूर्व भी विद्यमान थे । इम प्रकार साँची और भारत के महत्वपूर्ण अभिलेख और चित्र अशोक के शिलालेखों के साक्ष्य का ही अनुमोदन करते हुए 'तेपिटक' बुद्ध वचनों की प्रामाणिकता का साक्ष्य देते है ।