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( ५८८ ) (पालि श्लोक) । ये गाथाएँ बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार कल्याणिय नामक भिक्षु के द्वारा लिखी गई थीं। अनुश्रुति है कि कल्याणी (पेगू-बरमा) के राजा तिष्य (ई० पू० ३०६--ई० पू० २०७) ने उपर्युक्त भिक्षु को अपनी रानी के साथ किसी षड्यन्त्र में सम्मिलित होने के सन्देह में बन्दी बना लिया था और खौलते हुए तेल को कढ़ाई में डाल देने की आज्ञा दी थी। भिक्षु निरपराध थे, किन्तु यह असह्य दुःख उन्हें सहना हो पड़ा। खौलते हुए तेल की कढ़ाई में ही उनकी मृत्यु हो गई । किन्तु मृत्यु से पूर्व उन्होंने बुद्ध-शासन का चिन्तन किया और ९८ गाथाओं को गाया। ये गाथाएँ क्या हैं, संसार की अनित्यता, जीवन की असारता और वैराग्य को महत्ता पर गम्भीर प्रवचन हैं। उपर्युक्त अनुश्रुति में सत्यांश कितना है, यह कह सकना कठिन है। हाँ, स्वयं 'तेलकटाहगाथा' में इसका कोई उल्लेख नहीं है। किन्तु ‘महावंस' में इस कथा का निर्देश मिलता है। बाद में 'रसवाहिनी' में भी इस कथा का सविस्तर वर्णन किया गया है। सिंहली ग्रन्थ 'सद्धम्मालंकार' में भी इस कथा का वर्णन मिलता है। सिंहली साहित्य में यह कथा इतनी प्रसिद्ध है कि इसकी सत्यता पर सन्देह करना कठिन हो जाता है । फिर भी 'तेलकटाहगाथा' की मार्मिक गाथाओं को पढ़ जाने के बाद और कहीं भी उनमें उपर्युक्त घटना का निर्देश न पाने पर यही लगने लगता है कि यहाँ भिक्षुकल्याणिय ने खौलते हुए तेल वाली किसी विशेष कढ़ाई से उत्तप्त होकर ही नहीं बल्कि इस ‘महामोहमय' संसार रूपी उस खौलती हुई कढ़ाई से व्यथित होकर ही अपने
अक्षरों में सम्पादित। इस ग्रन्थ का मूल पालि-सहित हिन्दी-अनुवाद त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ने किया है, जो सन् १९४८ में पुस्तकाकार
रूप में महाबोधि सभा, सारनाथ से प्रकाशित हो चुका है। १. मललसेकर : दि पालि लिटरेचर ऑव सिलोन, पृष्ठ १६२ । २. २२।१२-१३ (गायगर का संस्करण) ३. २१५७ (सिंहली संस्करण) ४. देखिये जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी, १८८४, पृष्ठ ४९, देखिये गायगर :
पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज,पृष्ठ ४६, पद-संकेत ४ भी।