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कोस' ।' 'अभिवानप्पदीपिका' ( अभिधानप्रदीपिका ) तीन भागों या कांडों में विभक्त है (१) सग्गकंड (स्वर्ग-कांड) जिसमें देवता. बुद्ध, शाक्यमुनि, देव-योनि, इन्द्र, निर्वाण आदि के पर्यायवाची शब्दों का संकलन है। (२) भूकंड (भू-काण्ड) जिसमें पृथ्वी आदि सम्बन्धी शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का संकलन है। (३) सामञ्ज कण्ड (श्रामण्य-काण्ड) जिसमें प्रव्रज्या सम्बन्धी और सौन्दर्य, उत्तम जैसे शब्दों के पर्यायवाची गब्दों का संकलन है। वास्तव में यह कोश पर्यायवाची शब्दों का संकलन ही है। वरमा और सिंहल में इस ग्रन्थ का बड़ा आदर है । इस ग्रन्थ की रचना संस्कृत के अमरकोश के आधार पर हुई हैं,२ इसे प्रायः सभी विद्वान् आज स्वीकार करते है । जैसा अभी कहा जा चुका है, अभिधानप्पदीपिका मोग्गल्लान थेर की रचना है । यह स्थविर लंकानिवासी भिक्षु थे । अभिधानप्पदीपिका में इन्होंने कहा है कि लंकाधिपति परक्कम-भुज नामक भूपाल' के शासन-काल में इन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की। वहीं इन्होंने अपना निवास स्थान 'महाजेतवन' नामक विहार बताया है जो आज पोलोनरुवा नामक नगर में स्थित है। जिस परक्कमभुज नामक भूपाल' के शासन-काल में मोग्गल्लान स्थविर ने 'अभिधानप्पदीपिका' की रचना की वह विद्वानों के निश्चित मतानुसार पराक्रमवाहु प्रथम ही है, जिसका शासन-काल ११५३-११८६ है और जिसके समय में पालि के टीकासाहिय की अद्भुत समृद्धि हुई । अतः मोग्गल्लान थेर का भी यही समय है । 'अभिधानप्पदीपिका' के लेखक मोग्गल्लान थेर को उमी नाम के और प्रायः उमी
मुनि जिनविजय द्वारा संपादित, गुजरात पुरातत्व मन्दिर, अहमदाबाद सं०
१९८० वि० । १. मुनि जिनविजय द्वारा संपादित उपर्युक्त 'अभिधानप्पदीपिका' के संस्करण ___ में ही एकक्खर कोस' भी सम्मिलित है, अभिधानप्पदीपिका पृष्ठ १५७-१७० । २. मललसेकर : दि पालि लिटरेचर ऑव सिलोन, पृष्ठ १८८-१८९ । ३. परक्कमभुजो नाम भूपालो गुणभूसणो । लंकायमासि तेजस्सीजयो केसरि
विक्कमो । पृष्ठ १५६ (मुनि जिनविजय द्वारा संपादित नागरी-संस्करण) ४. महाजेतवनाख्यम्हि वहारे साधुसम्मते सरोगाम समूहम्हि वसता सन्तवुत्तिना ॥
सद्धम्मठितिकामेन मोग्गलानेन धीमता। थेरेन रचिता एसा अभिधानप्पदीपिका ॥ पृष्ठ १५६ (उपर्युक्त संस्करण)