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समय के वैयाकरण मोग्गल्लान से भिन्न समझना चाहिये । वैयाकरण मोग्गल्लान, जमा हम पहले देख चुके हैं , अनुराधपुर के थूपाराम नामक विहार में रहते थे, जब कि कोगकार मोग्गल्लान ने अपना निवास स्थान पुलत्थिपुर या पोलोन्नरुवा का जेतवन-विहार बतलाया है। 'गन्धवंस' में कोशकार मोग्गल्लान को 'नव मोग्गलान' कहा गया है और वह निश्चयतः वैयाकरण मोग्गल्लान से उनकी भिन्नता दिखाने के लिये ही । चौदहवीं शताब्दी के मध्य भाग में 'अभिधानप्पदीपिका' पर एक टीका भी लिखी गई। 'एकक्खरकोस' बरमी भिक्ष सद्धम्मकित्ति (सद्धर्मकीनि) की रचना है । १४६५ ई० में इस कोश की रचना की गई। यह कोश एकाक्षगत्मक शब्दों की पद्यबद्ध सूची है। संस्कृत भाषा के एकाक्षरी कोश का का यह पालि रूपान्तर मात्र ही कहा जा सकता है । इसके अन्त में आता है-- इति मद्धम्मकित्ति नाम महाथेरेन सक्कतभासातो परिवत्तेत्वा विरचितं एकक्खरकोम नाम सद्दप्पकरणं परिसमत्तं” (सद्धर्मकीति नामक महास्थविर द्वारा संस्कृत भाषा से रूपान्तरित कर के विरचित 'एकाक्षरकोश' नामक शब्द-प्रकरण ममाप्त )। छन्दः शास्त्रः वुत्तोदय आदि
पालि में छन्दः शास्त्र पर 'वृत्तोदय' (वुत्तोदय) नामक एक मात्र प्रसिद्ध ग्रन्थ है। 'छन्दोविचित' 'कविमारपकरण' 'कविसार टीका निस्सय' नामक अल्प प्रसिद्धि के एक-आध ग्रन्थ और भी है। 'वुत्तोदय' की रचना, सिंहली भिक्षु सारिपुत्त के गिप्य, खुद्दक मिक्खा-टीका और कच्चान-व्याकरण पर 'सम्बन्ध-चिन्ता' के लेखक (जिनका निर्देश पहले हो चुका है) स्थविर मंघरक्खित हैं, जिनका काल १२वी शताब्दी का उत्तर भाग है। 'वुत्तोदय' पर 'वचनत्थजोतिका' नाम की एक टीका भी लिखी गई। काव्य-शास्त्र-सुबोधालङ्कार
पालि काव्य-शास्त्र पर 'सुबोधालंकार' एक मात्र रचना है। इसके रचयिता उपर्युक्त स्थविर संघरक्खित ही है । पालि का अभिलेख-साहित्य
पालि का सब मे बड़ा गौरव बुद्ध-वचनों के बाद उसका अभिलेख-साहित्य
१. पृष्ठ ६२ ।