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( ६२८ ) प्रति मेरे हृदय में कितना आदर और श्रद्धा है । भन्ते ! भगवान् ने जो कुछ कहा है, सब सुन्दर ही कहा है। भन्ते ! जो कुछ मुझे कहना है, उसे कहता हूँ, ताकि सद्धर्म चिरस्थायी हो ।
भन्ते ! ये धम्म-पलियाय हैं---विनय-समुत्कर्ष, आर्यवंश, अनागतभय, मुनिगाथा, मोनेय्य-सूत्र, उपतिष्य प्रश्न, और राहुलोवाद-सूत्र, जिसमें भगवान् ने मृषावाद के विषय में उपदेश दिया है । भन्ते ! मैं चाहता हूँ कि सभी भिक्षु, भिक्षुणियां, उपासक तथा उपासिकाएं, इन्हें सदा सुनें और पालन करें। भन्ते ! इसीलिए मैं यह लेख लिखवा रहा हूँ, ऐसा समझे।" ___ उपर्य क्त अभिलेख में सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ अशोक ने कुछ बुद्ध-वचनों (धम्म-पलियाय) के नाम लेकर भिक्षु-भिक्षुणियों और उपासक-उपासिकाओं सभी को उनका सतत स्वाध्याय करने की प्रेरणा की है। उसने बुद्ध-वचनों के कुछ ऐसे अंशों को चुना है जिनकी महत्ता सार्वजनीन है और जिनमें सदाचार के उस रूप की प्रतिष्ठा की गई है जिसका आचरण स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं । जिन सात धम्म-परियायों या धम्म पलियायों को अशोक ने गिनाया है, वे प्रायः उन्हीं नामों में वर्तमान पालि-त्रिपिटक में भी विद्यमान हैं। किस-किस धम्म-पलियाय की अनुरूपता पालि त्रिपिटक के किस किस अंश या सुत्त के साथ हैं, यह नीचे लिखे विद्वानों के एतद्विषयक मतों से, जिनमें कहीं कहीं कुछ अल्प विभिन्नता भी है, स्पष्ट होगा । १--विनय-समुकसे (विनय-समुत्कर्ष)
१. विनय का उत्कृष्ट उपदेश या पातिमोक्ख-डा० रायस डेविड्स और ओल्डनवर्ग:
१. सेक्रेड बुक्स ऑव दि ईस्ट, जिल्द तेरहवीं पृष्ठ २६ (भूमिका), अलग अलग
भी रायस डेविड्स : जर्नल ऑव रायल एशियाटिक सोसायटी, १८९८, जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी १८९६; बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ १६९; इसी प्रकार ओल्डन बर्ग : विनय-पिटक, जिल्द पहली पृष्ठ ८० में टिप्पणी (विनय-पिटक का रोमन-लिपि में संस्करण, पालि टैक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित) ।