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व्याकरण' को ही लेते हैं। इस व्याकरण का लंका और वरमा में बड़ा आदर है। पालि-व्याकरणों में निश्चय हो इसका एक ऊंचा स्थान है । कच्चानव्याकरण के समान प्राचीन न होने पर भी यह उससे अधिक पूर्ण है और भाषाउपादानों को इसने अधिक विस्तृत रूप से संकलित और व्यवस्थित किया है। जैसा भिक्ष जगदीश काश्यप ने कहा है “पालि व्याकरणों में 'मोग्गल्लानव्याकरण' पूर्णता तथा गंभीरता में श्रेष्ठ है"१। मोग्गल्लान-व्याकरण में ८१७ सूत्र हैं, जिनमें सूत्र-पाठ, धातु-पाठ, गण-पाठ, ण्वादि-पाठ आदि सभी व्याकरण के विषयों का सर्वागपूर्ण विवेचन किया गया है । मोग्गल्लान-व्याकन्ण की विषय वस्तु को समझने के लिए भिक्षु जगदीश काश्यप कृत 'महापालि व्याकरण' द्रष्टव्य है। यह स्वयं हिन्दी में पालि-व्याकरण पर प्रथम और अपनी श्रेणी को उच्चकोटि की चना है, एवं मोग्गल्लान-ब्याकरण पर आधारित है । मोग्गल्लान-व्याकरण का दूसरा नाम 'मागवसद्दलक्खण' भी है । ग्रन्थ के आदि में ही व्याकरणकार ने कहा है "सिद्धमिद्धगुणं साधु नमस्सित्वा तथागतं । मधम्मसंघ भासिस्म मागधं सद्दलक्खणं ॥" पाणिनि, कातंत्र-व्याकरल और प्राचीन पालि-व्याकरणों का आधार लेने के अतिरिक्त मोग्गल्लान-व्याकरण पर चन्द्रगोमिन् के व्याकरण का भी पर्याप्त प्रभाव उपलक्षित होता है। मोगल्लान-ब्याकरण लिखने के अतिरिक्त मोग्गल्लान महाथेर ने उसकी वृनि' (वृत्ति) भी लिखी और फिर उन वृति पर 'पञ्चिका नामक पांडित्यपूर्ण टीका भी । 'मोग्गल्लान-पञ्चिका' अभी तक अनुपलब्ध थी । किन्तु जैमा भिक्षु जगदीश काश्यप ने हमें सूचना दी है “परमपूज्य विद्वद्वर श्री धर्मानन्द नायक महास्थविर को ताल-पत्र पर लिखी पञ्चिका' की एक पुरानी पुस्तक लंका के किसी विहार में मिल गई। उन्होंने उमे संपादित कर विद्यालंकार परिवेण, लंका मे प्रकाशित करवाया है ।"२ निश्चय ही मोग्गल्लानव्याकरण और मोग्गलान-पञ्चिका पालि-व्याकरण का शास्त्रीय अध्ययन करने के लिए आज भी बड़े आवश्यक ग्रन्थ हैं । मोग्गल्लान-व्याकरण की वृति (वृत्ति) के अन्त में व्याकरणकार ने अपना परिचय दिया है, जिसने हमें मालूम होता है कि मोग्गल्लानमहाथेर अनुराधपुर (लंका) के थूपागम
१. पालि महाव्याकरण, पृष्ठ पचास (वस्तुकथा) २. पालि महाव्याकरण, पृष्ठ इक्यावन (वस्तुकथा)