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( ६१० ) वंस'१ के वर्णनानुसार 'वाचिस्सर' ने 'मोग्गल्लान-व्याकरण' पर एक टीका लिखी थी । डा. गायगर ने इन 'वाचिस्सर' को उसी नामके सिंहली भिक्ष सारिपुत्त के शिष्य (१२ वीं शताब्दी का उत्तर भाग) न मानकर 'मोग्गल्लानपंचिकापदीप' के लेखक इन स्थविर राहुल को ही माना है, जिनकी भी उपाधि 'वाचिस्सर' (वागीश्वर) थी। डे जॉयसा के मतानुसार 'मोग्गल्लान-पञ्चिकापदीप' व्याकरण-शास्त्र पर एक अत्यंत गंभीर और पांडित्यपूर्ण रचना है । इममें भाषा संबंधी बहुत मूल्यवान् सामग्री संकलित की गई है । अनेक प्राचीन संस्कृत और पालि-व्याकरणों के भी उद्धरण दिये गये है। इसकी रचना-तिथि १४५७ ई० है । जैसा पहले कहा जा चुका है, आचार्य श्री धम्माराम नायक महाथेर ने १८९६ ई० में सिंहली लिपि में इस ग्रन्थ का सम्पादन किया, जो विद्यालंकार परिवेण, लंका, से उसी साल प्रकाशित भी हुआ। (४) धातुपाठ५--मोग्गल्लान-व्याकरण के अनुसार धातुओं की सूची है। कच्चानव्याकरण की 'धातु-मंजूसा' की अपेक्षा यह ग्रन्थ अधिक संक्षिप्त है। उसकी तरह पद्यवद्ध न होकर यह गद्य में है। संभवतः काल-क्रम में यह उससे प्राचीन है, क्योंकि 'धातु-मंजूसा' में इसी का आश्रय लिया गया है । धातुपाठ के रचयिता के नाम या काल के विषय में अभी कुछ ज्ञात नही हो सका है। सदनीति और उसका उपकारी साहित्य
पालि-व्याकरण का तीसरा प्रमुख सम्प्रदाय 'सद्दनीति' का है। यह बरमा में रचित पालि व्याकरण है । बरमा में भी सिंहल की ही तरह पालि व्याकरण
१. पृष्ठ ६२, ७१ । २. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५३।। ३. केटेलाग, पृष्ठ २४, मिलाइये सुभूति : नाममाला, पृष्ठ ३४ । ४. गायगर : पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५४ । ५. देखिये भिक्षु जगदीश काश्यप : पालि महाव्याकरण, पृष्ठ ३६७-४१२ (मोग्ग
ल्लान-धातुपाठो) ६. गायगर : पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पष्ठ ५६ । ७. हेमर स्मिथ ने तीन भागों में इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है, देखिये गायगर :
पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५४, पद-संकेत ६; लाहा : हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ६३६, पद-संकेत १ ।