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नामक विहार में निवास करते थे और उन्होंने अपने व्याकरण की रचना परक्कमभुज (पराक्रमबाहु) के शासन-काल में की थी । विद्वानों का अनुमान है कि इन परक्कमभुज मे तात्पर्य पराक्रमबाहु प्रथम (११५३११८६ ई०) से है, जिनके शासन-काल में लंका में पालि-साहित्य की बड़ी समृद्धि हुई। अतः मोग्गल्लान महाथेर का काल वारहवीं शताब्दी का अंतिम भाग ही मानना चाहिए । मोग्गल्लान-व्याकरण के आधार पर बाद में चलकर अन्य व्याकरण-साहित्य की रचना हुई, जिसके अन्तर्गत मुख्य ग्रन्थ ये है । (१) 'पद-साधन' जिसकी रचना मोग्गल्लान के शिष्य पियदस्सी ने की । पियदस्सी मोग्गल्लान के समकालिक ही थे । ‘पद-साधन' एक प्रकार से मोग्गल्लान व्याकरण का ही संक्षिप्त रूप है। प्रसिद्ध सिंहली विद्वान् के जॉयसा का कथन है कि पियदस्सी के 'पद-साधन' का मोग्गल्लान-व्याकरण के साथ वही संबंध है जो बालावतार का कच्चान-व्याकरण के साथ२ । १४७२ ई० में तित्थगाम (लंका) निवासी स्थविर श्री राहुल ने, जिनकी उपाधि 'वाचिस्मर' (वागीश्वर थी) 'पद-साधन' पर 'पद-साधन-टीका' या बुद्धिप्पमादिनी' नामकी टीका लिखी। (२) वनरतन मेधंकर-विरचित ‘पयोग-सिद्धि' (प्रयोग-सिद्धि) । मोग्गल्लान व्याकरण-संप्रदाय पर लिखा गया यह संभवतः सर्वोनम ग्रन्थ है। डे जॉयसा ने मोग्गल्लान-व्याकरण के साथ इसका वही संबंध दिखाया है जो 'रूपसिद्धि' का कच्चान-व्याकरण' के साथ । वनरतन मेधंकर पराक्रमवाहु के पुत्र भुवनेकबाहु तृतीय के समकालिक थे । अतः उनका जीवन-काल १३०० ईसवी के लगभग है । हाँ, यहाँ यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि व्याकरणकार मेधंकर इसी नाम के जिनचरित के रचयिता और लोकप्पदीपसार के कवि, इन दोनों व्यक्तियों से भिन्न है। (३) मोग्गल्लान-पञ्चिकापदीप'--'मोग्गल्लान-पञ्चिका' की व्याख्या है । ‘पदसाधन-टीका' के लेखक स्थविर राहुल 'वाचिस्सर' ही 'मोग्गल्लान-पञ्चिका-पदीप' के लेखक है । गन्ध
१. मोग्गल्लान-व्याकरण का देवमित्त द्वारा सम्पादित सिंहली संस्करण, कोलम्बो,
१८९०, प्रसिद्ध है। अन्य भी बरमी और सिंहलो संस्करण उपलब्ध हैं। २. केटेलाग, पृष्ठ २५ । ३. केटेलाग, पृष्ठ २६ । ४. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५४।।