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के अध्ययन की महती परम्परा चली, जिसके पूर्ण विकास को हम ‘सद्दनीति' में देखते हैं। कहा जाता है कि बरमा के व्याकरण-ज्ञान की प्रशंसा जब सिंहल में पहुंची तो वहाँ से कुछ भिक्षु बरमा में आये और सद्दनीति-व्याकरण को देख कर उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि निश्चय ही इसके समान विद्वत्तापूर्ण रचना उनके यहाँ कोई नहीं है।' इसकी रचना ११५४ ई० में हुई। इसके रचयिता बरमी भिक्षु अग्गवंस थे जो 'अग्गपंडित तृतीय' भी कहलाते थे। 'अग्ग पंडित द्वितीय' उनके चाचा थे, जो 'अग्ग पंडित प्रथम' के शिष्य थे। अग्गवंस बरमी राजा नरपतिसिथु (११६७-१२०२) के गुरु थे। अग्गवंस-कृत 'सद्दीति' एक प्रकार से कच्चान-व्याकरण पर ही आधारित है।२ मोग्गल्लान-व्याकरण तो सम्भवतः उसके बाद की ही रचना है। संस्कृत व्याकरणों का भी अग्गवंस ने प्रर्याप्त आश्रय लिया है । उन्होंने अपने ग्रन्थ के अन्त में स्वयं कहा है कि पूर्व आचार्यों (आचरिया) और त्रिपिटक-साहित्य से आश्रम लेकर उन्होंने 'सदनीति' की रचना की है । निश्चय ही 'सद्दनीति' एक पांडित्यपूर्ण व्याकरण है। इस ग्रन्थ में सनाईम अध्याय है । प्रथम १८ अध्याय 'महा मद्दनीति' और शेष ९ अध्याय 'चूल सद्दनीति' कहलाते हैं । 'पद-माला' 'धातुमाला' और 'सुन-माला' इन ३ भागों में सम्पूर्ण सद्दनीति-व्याकरण विभक्त है। ____ 'धात्वत्थ दीपनी' नाम की पद्यबद्ध धातु-सूची में सद्दनीति-व्याकरण के अनुसार धातुओं का संकलन किया गया है । कच्चान-व्याकरण की धातुसूची 'धातुमंजूसा' और मोग्गल्लान-व्याकरण को धातुसूची 'धातुपाठ' के समान इसमें भी पाणिनीय धातुपाठ का पर्याप्त आधार लिया गया है । यह हिंगुलवल जिनरतन नामक बर्मी भिक्षु की रचना बताई जाती है, जिनके काल का ठीक पता नहीं है। इसके अतिरिक्त 'सद्दनीति' पर और कोई निशेष साहित्य नहीं है । बरमा में यह ग्रन्थ आज भी शास्त्र की तरह पूजित है । अन्य पालि-व्याकरण
उपर्युक्त तीन सम्प्रदायों के व्याकरण-साहित्य के अतिरिक्त अन्य भी बहुत व्याकरण-माहित्य उपलब्ध है, जो यद्यपि इनमें से किसी विशिष्ट सम्प्रदाय में नहीं
१. मोबिल बोड : पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ १६ । २. यह फ्रेक का मत है जिसे गायगर ने पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ५५ में
उद्धृत किया है।