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( ५६९ ) प्रारंभिक इतिहास का वर्णन किया है, जो निदान-कथा, दीपवंस, महावंस आदि प्राचीन स्रोतों पर आधारित है। बुद्ध दीपंकर से प्रारम्भ कर, जैसा वंश-ग्रन्थकारों ने अक्सर किया है, तीन बौद्ध संगीतियों का विवरण महेन्द्र का लंकागमन, महाविहार, चेतियगिरि विहार आदि का प्रतिग्रहण, इन सब बातों का विवरण इस ग्रन्थ में भी किया गया है। ‘महाबोधि वंस' के रचयिता सिंहली भिक्षु उपतिस्स (उपतिष्य) थे, जिनका समय डा० गायगर के मतानुसार ग्यारहवीं शताब्दी का मध्य भाग है।' एम० ए० स्ट्राँग ने इनका समय बुद्धकोष के समकालिक माना है, जिसका प्रतिवाद डा० गायगर ने किया है। वर्णन-शैली को देखते हुए 'महाबोधिवंस' की समानता उत्तरकालीन वंश-ग्रन्थों से ही अधिक दिखाई पड़ती है, अतः गायगर के मत को ठीक मानना अधिक युक्ति-युक्त जान पड़ता है। थूपवंस'
'थूपवंस' सिंहली भिक्षु सारिपुत्त के शिष्य वाचिस्मर की रचना है। इन वाचिस्मर के विषय में हम आठवें अध्याय में काफी कह आये हैं। 'गन्धवंस' में इस ग्रन्थ का तो उल्लेख है५ किन्तु इसके लेखक का कोई नाम वहाँ नहीं दिया हुआ है। यह ग्रन्थ गद्य में है। निदान-कथा, समन्त पासादिका, महावंस तथा महावंस-टीका आदि से यहाँ सामग्री संकलित की गई है। 'थूपवंस' की रचना
१. दीपवंस एंड महावंस, पृष्ठ ७९ (कुमारस्वामी का अंग्रेजी अनुवाद) ; देखिये __उनका पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ट ३७ २. देखिये उनके द्वारा सम्पादित 'महाबोधिवंस' को प्रस्तावना। ३. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज पृष्ठ ३७, पद-संकेत १। ४. इस ग्रन्थ का सम्पादन डा० लाहा ने किया है जिसे पालि टैक्स्ट सोसायटी ने
सन् १९३५ में प्रकाशित किया है । सिंहली लिपि में यह ग्रन्थ धम्मरतन द्वारा सम्पादित है, कोलम्बो १८९६ । डा० विमलाचरण लाहा ने इस ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है जो बिबलियोथैका इंडिका सीरीज (१९४५) में प्रकाशित हुआ है। ५. पृष्ठ ७०