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( ५७२ ) महाकाश्यप के आदेश पर मगधराज अजातशत्रु ने वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लक्रप्प, वेठदीप, पावा और कुशीनारा से बुद्ध की धातुओं को इकट्ठा करवाकर उन्हें राजगृह की धातुओं के साथ ही राजगृह के दक्षिण-पूर्वी भाग में एक महास्तूप में स्थापित किया। धर्मराज अशोक के समय में इन्हीं धातुओं के विभक्त अंशों पर ८४ हजार चैत्यों का निर्माण हआ। अशोक की राज्य-प्राप्ति, अभिषेक, धर्म-परिवर्तन आदि का भी उल्लेख यहाँ, महावंस' के वर्णन के अनुसार ही किया गया है। श्रामणर न्यग्रोध से उपदेश ग्रहण कर सम्राट अशोक ने ८४००० नगरों में ८४००० धर्म-स्कन्धों को स्मृति में ८४००० विहारों का निर्माण करवाया । राजगृह में अजातशत्रु द्वारा पूर्व स्थापित धातुओं के विभक्त अंशों पर ही इन ८४००० विहारों का निर्माण हुआ था, यह हम पहले कह ही चुके हैं । तृतीय बौद्ध संगीत के बाद स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा देश-विदेश में नाना धर्मोपदेशों का भिजवाना जना दिखाया गया है। भिक्षुओं के नामों की सूची तथा जिनजिन प्रदेशों में वे भेजे गये थे, 'महावंस' से किसी भी प्रकार भिन्न नहीं है। हम पहले देख ही चुके हैं कि 'सद्धम्मसंगह' और महाबोधिवंस' जैसे ग्रन्थों की भी यही स्थिति है। 'दीपवंस' महावंस' 'समन्त पासीदिका' ‘महावंस-टीका' आदि में कही हुई बातों को ही यहाँ बार वार दुहराया गया है। स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स के आदेशानुसार थेर मज्झन्तिक काश्मीर और गान्धार को, थेर महादेव महिंसक मंडल को, थेर रक्खित बनवासी-प्रदेश को, थेर योनक (ग्रीक) धम्मरक्खित अपरान्तक को, महाधम्मरक्खित महाराष्ट्र को, थेर महारक्खित योनक लोक को, थेर मझिम हिमवन्त प्रदेश को, थेर सोण और उत्तर सुवर्णभूमि को और थेर महिन्द (महेन्द्र), इत्तिय, उत्तिय और भद्दसाल तम्बपण्णिदीप (लङ्काद्वीप) को भेजे गये । दीपवंस' और महावंस' के समान 'थूपवंस' मे में भी इस धर्म-प्रचार का श्रेय स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स को ही दिया गया है और इस प्रसङ्ग में अशोक के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है । इसके विपरीत अशोक ने अपने दूसरे
और तेरहवें शिलालेखों में अपने द्वारा किये हुए धर्म-प्रचार-कार्य का उल्लेख किया है और वहाँ स्थविर मोगलिपुत्त तिस्स का कोई उल्लेख नहीं है । सम्भवतः भिक्षसंघ और धम्म-राजा दोनों की ओर मे ही स्वतन्त्र रूप से धर्म प्रचार का कार्य आरम्भ किया गया था। इस समस्या का विवेचन हम 'महावंस' का वर्णन करते समय कर