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(१) महापच्चरियं (२) पुराणटीका (३) मूलसिक्खाटीका (४) लीनत्थपकासिनी (५) निसन्देहो (६) धम्मानुसारिणी (७) अय्यासन्दति (८) अय्यासन्दतिय टीका (९) सुमहावतारो (१०) लोकपत्तिपकरणं (११) तथागतुप्पत्तिप्पकरणं (१२) नलातधातुवण्णना (१३) सीहलवत्थु (१४) धम्मदीपको (१५) पटिपत्ति संगहो (१६) विसुद्धिमग्गगन्धि (१७) अभिधम्मगन्धि (१८) नेत्तिपकरणगन्धि (१९) विसुद्धिमग्गचुल्लनवटीका (२०) सोतप्पमालिनी (२१) पसाद जननी (२२) सुबोधालंकारस्स नवटीका (२३) गूळत्थटीक (२४) बालप्पबोधनं (२५) सद्दत्थभेदचिन्ताय मज्झिमटीक (२६) कारिकाय टीकं (२७) एतिमासमिदीपिकाय टीकं (२८) दीपवंस (२९) थूपवंस तथा (३०) बोधिवंस । उपर्युक्त ग्रन्थों और ग्रन्थकारों में से अधिकांश का विवेचन पिछले पृष्ठ में किया जा चुका है और कुछ का आगे किया जायगा। निश्चय ही 'गन्धवंस' की सूचीबद्ध सामग्री पालि-साहित्य के इतिहासकार के लिए बड़ी सहायक है । सासनवंस'
‘सासनवंस' (शासन-वंश) भी 'गन्धवंस' के समान महत्वपूर्ण रचना है । उसका प्रणयन उन्नीसवीं शताब्दी में बरमा में हुआ । यह बरमी भिक्षु पञसामी (प्रज्ञास्वामी) की रचना है । प्राचीन पालि साहित्य पर आधारित होने के कारण इसका बड़ा महत्व है । 'सासनवंस', जैसा उसके शीर्षक से स्पष्ट है, बुद्ध-शासन का इतिहास है। बुद्ध-काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक स्थविरवाद बौद्ध धर्म के विकास का इस ग्रन्थ में वर्णन है। 'सासनवंस' में दस अध्याय हैं। विशेषतः छठा अध्याय अधिक महत्वपूर्ण है। इस अध्याय में बरमा में बौद्ध धर्म के विकास का वर्णन किया गया है । 'सासन वंस' का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग यही है। वैसे इस ग्रन्थ में बुद्ध की जीवनी तथा अजातशत्रु, कालाशोक और धर्माशोक के समय में हुई तीन बौद्ध संगीतियों आदि का भी वर्णन है । तृतीय बौद्ध संगीति के बाद मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा
१. मेबिल बोड द्वारा सम्पादित, पालि टेक्सट सोसायटी, लन्दन १८९७ ।