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विभक्त किया गया है जो कालानुक्रम-परक भी हैं, (१) पोराणाचरिय ( २ ) अट्ठकथाचरिय और (३) गन्धकाचरिय । पोराणाचरिय ( पुराणाचार्य ) धर्म संगीतिकार प्राचीन भिक्षु थे जिन्होंने बुद्ध वचनों का संगायन और संकलन किया । अट्ठकथाचरिय ( अर्थकथाचार्य) वे भिक्षु थे जिन्होंने अत्यंत प्राचीन काल में पालि त्रिपिटक पर अट्ठकथाएँ लिखीं । उसके बाद गन्धकारियों ( ग्रन्थकाचार्यों) का समय आता है जिनमें पहले कुरुन्दी और महापच्चरी आदि सिंहली अट्ठकथाओं के लेखक और बाद में बुद्धदत्त, बुद्धघोष, धम्मपाल आदि आते हैं । जिन ग्रन्थों के लेखकों का पता नहीं है, उनकी भी सूची 'गन्धवंस' कार ने दी है । लेखकों में कौन से भारत - वासी थे, या कौन से लंका-वासी थे, किसने रचना अपनी प्रेरणा से की, या किसने दूसरों के अनुरोध से की, इस प्रकार का भी विवरण देकर रचनाओं के रचना -स्थान और रचनोद्देश्य पर प्रकाश डाला गया है । ‘गन्धवंस' में निर्दिष्ट ग्रन्थकारों और उनके ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है-
रचित ग्रन्थ
१. महाकच्चायन --- (१) कच्चायनगन्धो, (२) महानिरुत्तिगन्धो ( ३ ) चुल्लनिरुत्ति गन्धो ( ४ ) नेत्तिगन्धो, (५) पेटकोपदेसगन्धो, (६) वण्णनीतिगन्धो ।
ग्रन्थकार
२. बुद्धघोस— ( बुद्धघोष )
३. बुद्धदत्त -
४. आनन्द-----
५. धम्मपाल -----
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(१) विसुद्धिमग्गो, (२) सुमंगलविलासिनी, (३) पपंच सूदनी ( ४ ) सारत्थपकासिनी (५) मनोरथपुरणी, (६) समंतपासादिका, (७) परमत्थकथा ( ८ ) कंखावितरणी (९) धम्मपदट्ठकथा (१०) जात - कत्थवण्णना, (११) सुद्दकपाठट्ठ कथा (१२) अपादानट्ठकथा । (१) विनियविनिच्छयो (२) उत्तरविनिच्छयो, (३) अभिधम्मावतारो (४) मधुरत्थविलासिनी । मूलटीकं
( १ ) नेत्तिपकरण
(३)
कथा ( २ ) इतिवृत्तक - अट्ठकथा
उदानट्ठकथा (४) चरियापिटक - अट्ठकथा